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चौर-कालीन भारत
२५६ पर खेद है कि थोड़े से सिक्कों और भग्नावशेषों को छोड़ कर अभी तक कोई ऐसी मूर्ति या कारीगरी का नमूना नहीं मिला है, जो निश्चित रूप से अशोक के पहले का कहा जा सके। अतएव भारतवर्ष की प्राचीन शिल्प कला का प्रारंभ अशोक के समय से ही समझना चाहिए। हाँ, हाल में श्रीयुत काशीप्रसाद जी जायसवाल ने एक नई खोज की है, जिससे भारतीय पुरातत्त्व सम्बन्धी विचारों में बड़ा उलट फेर होने की संभावना है *| श्रीयुत जायसवाल ने अपनी खोज का विवरण "बिहार ऐंड ओड़ीसा रिसर्च सोसाइटी” के मुखपत्र के मार्च १९१९ तथा दिसम्बर १९१९ वाले अंकों में छपवाया है । इस खोज का संबंध उन दो बड़ी मूर्तियों से है, जो कलकत्ते के "इन्डियन म्यूजियम" (अजायबघर) में रक्खी हैं, और उस एक बड़ी मूर्ति से है, जो मथुरा के अजायबघर में है। इन तीनों मूर्तियों पर प्राचीन ब्राह्मी अक्षरों में लेख खुदे हुए हैं । ये तीनों मूर्तियाँ अब तक यक्ष की मूर्तियाँ समझी जाती थीं; पर जायसवाल जी ने इन मूर्तियों के लेखों को पढ़कर बड़ी विद्वत्ता के साथ यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि कलकत्ते के अजायबघरवाली मूर्तियाँ शैशुनाग वंश के उदयिन और नन्दिवर्द्धन इन दो महाराजाओं की हैं, जिनका इतिहास में नाम मात्र मिलता है। तीसरी मूर्ति के बारे में, जो मथुरा के अजायबघर में है, जायसवाल जी ने यह निश्चित किया है कि यह मूर्ति शैशुनाग वंश के प्रतापशाली सम्राट् बिम्बिसार के पुत्र महाराज अजातशत्रु की है। वौद्ध ग्रंथों से सूचित होता है कि
• सरस्वती, जूलाई १६२० में मेरा “भारतीय पुरातत्व में नई खोज" नामक लेख देखिये।
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