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चौदहवाँ अध्याय प्राचीन बौद्ध काल की शिल्प-कला प्राचीन बौद्ध काल की इमारतों और मूर्तियों आदि के जो नमूने अब तक मिले हैं, उनमें भारतीय शिल्प कला के हजार वर्ष से ऊपर का इतिहास भरा है। ये नमूने मानो दो हजार वर्ष के इतिहास के पृष्ठ हैं, जिनसे हम भारतीय शिल्प कला की उन्नति और अवनति का पता लगा सकते हैं। इस बीच में भारतवर्ष में तरह तरह के विचारों और दर्शन शास्त्रों का प्रचार हुआ। कई जातियों के लोगों ने उत्तर की ओर से भारतवर्ष पर आक्रमण किये । इन बाहरी आक्रमों का फल यह हुआ कि देश में कई प्रकार के विचारों का प्रादुर्भाव हुआ। यहाँ असंख्य राजघराने राज्य करके सदा के लिये निर्मूल हो गये। इन भिन्न भिन्न जातियों के लोगों के विचार, भाव, उद्देश्य, आदर्श और विश्वास शिल्प कला के प्राचीन उदाहरणों में अंकित हैं । अतएव मोटे तौर पर देखने से प्राचीन भारतीय शिल्प कला में कदाचित् अनैक्य और भिन्नता मालूम होगी; पर वास्तव में उस शिल्प कला में किसी प्रकार का अनक्य या भिन्नता नहीं है। जिस तरह हिन्दुओं के भिन्न भिन्न दर्शन शास्त्रों और धार्मिक भावों का एक मात्र आदर्श वेद और उपनिषद् के सिद्धान्त हैं, उसी तरह भिन्न भिन्न प्रकार की और भिन्न भिन्न समय की शिल्प कला में भी एक आदर्श भाव है। यही आदर्श भाव भारतीय
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