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बौद्ध-कालीन भारत
२५२ पाते हैं। ब्राह्मण लोग सूत्र काल तक उच्च विषयों में लगे रहे; इसलिये वे राजाओं के यश और युद्धों आदि का वर्णन करना तथा उनकी स्तुति के गीत गाना अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझते थे । यही कारण है कि राजनीतिक इतिहास रक्षित रखने का भार सूत लोगों पर पड़ा। कहा जाता है कि जब महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों में वेद बाँटे, तब पुराणों का विषय लोमहर्षण सूत को सौंपा। इससे जान पड़ता है कि जब इस विषय को क्षुद्र समझकर ब्राह्मणों ने इसका तिरस्कार किया, तब सूतों ने इसे अपनाया। ये सूत लोग संस्कृत में अधिक प्रवीण नहीं होते थे; इसलिये वे प्राकृत भाषा में ही अपनी रचना करते थे। अतएव किसी न किसी रूप में पुराणों की रचना सूत्र काल में पहले पहल प्राकृत भाषा ही में हुई। राजा लोग भी अपनी तथा अपने पूर्व पुरुषों की वंशावली और इतिवृत्त इन्हीं सूतों से बनवाते थे। ये वंशावलियाँ और इतिवृत्त भी प्राकृत भाषा में ही रचे जाते थे। बाद को पुराणों और राज-वंशावलियों का एक साथ संस्कृत भाषा में उल्था हो गया। इसी से पुराणों में प्राचीन राज-वंशावलियाँ भी पाई जाती हैं। पारजिटर साहेब ने अपने "डाइनेस्टीज़
आफ दि कलि एज" (कलियुग के राजवंश) नामक ग्रंथ में सिद्ध किया है कि संकृत के प्राचीन पुराण प्राकृत पुराणों के आधार पर बने हैं। बहुत स्थानों पर तो प्राकृत के श्लोकों को ज्यों का त्यों उठाकर संस्कृत में उनका अनुवाद कर दिया है। यहाँ तक कि भविष्य पुराण में कहीं कहीं प्राकृत शब्द के स्थान पर वैसा ही संस्कृत शब्द लाने का प्रयत्न किया गया है, जिससे छन्दोभंग तथा व्याकरण की अशुद्धियाँ भी रह गई हैं। यदि उन स्थानों पर
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