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प्राचीन बौद्ध साहित्य प्रचार नहीं हुआ था, जिससे ये सब ग्रंथ कई शताब्दियों तक केवल स्मरण शक्ति के द्वारा ही सुरक्षित रक्खे गये। पर ज्यों ज्यों ग्रंथों की संख्या तथा आकार बढ़ते गये, त्यों त्यों उन्हें सुरक्षित रखने की कठिनता भी बढ़ने लगी। इसलिये शास्त्रों और सब ग्रन्थों को संक्षिप्त से संक्षिप्त रूप में लाने की आवश्यकता हुई। इन्हीं परम संक्षिप्त लेखों को सूत्र कहते हैं । इस काल में सूत्र-ग्रन्थ अधिकता से बने; इसलिये यह काल “सूत्र काल" कहलाता है ।
सूत्र तीन प्रकार के हैं-ौत सूत्र, धर्म सूत्र, और गृह्य सूत्र । इनके साथ ही साथ या इनके पहले व्याकरण आदि के सूत्र बने, जिन्हें स्फुट सूत्र कहते हैं। कई विद्वानों का मत है कि पाणिनि इसी सूत्र काल में हुए; पर कुछ लोगों का कहना है कि वे बुद्ध के पहले के हैं। श्रोत सूत्रों में प्रधान प्रधान यज्ञों की विधियों का वर्णन है। धर्म सूत्रों में सामाजिक और न्याय सम्बन्धी नियमों का वर्णन है । गृह्य सू त्रों में गृहस्थों के धार्मिक कर्तव्यों और घरेलू जीवन का वर्णन है। इन तीनों प्रकार के सूत्रों के मुख्य आधार वेद ही हैं। धर्मसूत्रों के बाद स्मृतियों का निर्माण हुआ । वर्तमान मनुस्मृति प्राचीन मानव धर्मसूत्र के आधार पर बनी है।
सूत्र काल के पहले तक संस्कृत भाषा का ही पूर्ण महत्त्व था। मालूम होता है कि उस समय संस्कृत के संसर्ग से धीरे धीरे प्राकृत भाषा भी उन्नति कर रही थी, पर उस समय तक उसने इतनी उन्नति नहीं की थी कि उसमें ग्रंथ लिखे जाते। यदि उस काल में कुछ प्राकृत ग्रंथ बने भी हों, तो वे कदाचित् ऐसे नीरस
और शुष्क थे कि रक्षित नहीं रह सके । सूत्र काल ही में हम प्राकृत भाषा को साहित्य क्षेत्र में पहले पहल अवतीर्ण होते हुए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com