________________
२२१
सामाजिकमवस्था
का आदर-सत्कार करना सर्वोच्च धर्म लिखा है । गृहस्थाश्रम चारो आश्रमों में सब से श्रेष्ठ समझा गया है। गृहस्थों के लिये गर्भाधान, पुंसवन, जातकर्म आदि संस्कार, अष्टका, पार्वण, पितृ-श्राद्ध आदि गृह्य कर्म और अग्निहोत्र, अग्निष्टोम आदि श्रौत कर्म लिखे गये हैं। ___ब्रह्मचर्य और गृहस्थाश्रम के सिवा दो प्रकार के आश्रम
और थे-वानप्रस्थ और संन्यास । वानप्रस्थ या वैखानस वनों में रहते थे, कंद-मूल और फल-फूल खाते थे, पवित्रतापूर्वक जीवन बिताते थे, हवन करते थे और सवेरे संध्या सूर्य को अर्घ्य देते थे। इसके विरुद्ध संन्यासी या भिक्षुक सिर मुंड़ाये रहते थे; उनकी कोई संपत्ति या घर नहीं होता था; वे तपस्या करते थे; भिक्षा माँगकर खाते थे; एक वस्त्र या मृगचर्म पहनते थे; भूमि पर सोते थे; और सदा भ्रमण किया करते थे ।
-:०:
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com