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सांपत्तिक अवस्था थो । पश्चिम भार दक्षिण की ओर से कोशल और मगध को जो सड़कें जाती थीं, वे यहीं से होकर जाती थीं; अतएव यहाँ व्यापारी और यात्री बहुत आते थे । बुद्ध के समय में कौशांबी के आस पास चार संघाराम थे । बुद्ध भगवान स्वयं यहाँ रहे थे।
(६) मधुरा (मथुरा)-यह जमुना के तट पर बसी हुई थी और प्राचीन शूरसेन राजाओं की राजधानी थी । बुद्ध के समय में मधुरा का राजा "अवन्ति-पुत्रो" नाम का था। कहा जाता है कि बुद्ध भगवान स्वयं इस नगरी में पधारे थे।
(७) मिथिला—यह विदेह की राजधानी थी। आजकल के तिरहुत जिले में प्राचीन मिथिला नगरी थी । जातकों में लिखा है कि इसका घेरा लगभग पचास मील का था ।
(८) राजगृह ( वर्तमान राजगिर)-बुद्ध के समय में प्राचीन मगध की राजधानी यहीं थी। इस नगर के दो भाग थे। इसका प्राचीन भाग गिरिव्बज (गिरिव्रज) कहलाता था। गिरिव्रज बहुत प्राचीन नगर था और एक पहाड़ी पर बसा हुआ था। बाद को राजा बिंबिसार ने, जो बुद्ध भगवान् के समकालीन थे, इस प्राचीन नगर को उजाड़कर एक नये राजगृह की नींव डाली । नवीन राजगृह पहाड़ी के नीचे बसाया गया । बुद्ध के समय में यह नगर बहुत उन्नत था। तब तक पाटलिपुत्र की नींव नहीं पड़ी थी।
(९) रोरुक-यहाँ प्राचीन सौवीर या सुराष्ट्र प्रांत की राज-- धानी थी, जिससे "सूरत" नाम निकला है। प्राचीन बौद्ध काल में यह नगर समुद्री व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था । मगध तथा
भारत के अन्य प्रांतों से यहाँ मुंड के मुंड व्यापारी आते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com