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बौर-कालीन भारत
२२६ है कि सिंचाई का प्रबन्ध अच्छा होने के कारण अकाल नाम को भी न पड़ता था। पर जातकों में अकाल पड़ने के कई उल्लेख आये हैं।
नगरों की सांपत्तिक अवस्था-प्राचीन बौद्ध काल में नगरों की संख्या बहुत थोड़ी थी। बौद्ध ग्रंथों से पता चलता है कि उन दिनों बड़े बड़े नगरों की संख्या बीस से अधिक न थी। उनमें निम्नलिखित नगरों का उल्लेख आया है
(१) श्रयोज्झा ( अयोध्या )-यह नगर प्राचीन कोशल राज्य में सरयू नदी के तट पर था ।
(२) वाराणसी ( बनारस )-यह नगर गंगा के उत्तरी किनारे पर वरुणा और गंगा के संगम पर था। प्रधान नगर वरुणा और असी के बीच में था। पर जिस समय यहाँ एक स्वतंत्र राज्य की राजधानी थी, उस समय, कहा जाता है कि इसका घेरा बयासी मील तक फैला हुआ था। सारनाथ उस समय वाराणसी में ही सम्मिलित था।
(३) चम्पा-यह नगर चम्पा नदी के किनारे पर था । प्राचीन अंग देश की राजधानी यहीं थी। आजकल के भागलपुर से पचीस मील पूरब की ओर जो गाँव हैं, उन्हीं के स्थान पर प्राचीन चम्पा नगर बसा हुआ था ।
(४) कम्पिल्ल (काम्पिल्य)- यह नगर गंगा के किनारे पर प्रयाग के उत्तर-पश्चिम की ओर था । पर इसका ठीक ठीक स्थान अभी निश्चित नहीं हुआ । उत्तरी पंचाल की राजधानी यहीं थी।
(५) कोसाम्बी ( कौशांबी)-यह वत्स राजाओं की राजधानी थी और यमुना नदी के किनारे बनारस से २३० मील पर बप्सी हुई थी। प्राचीन बौद्ध काल में यह बड़े महत्व की नगरी
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