________________
चौख-कालीन भारत
२३४ बरमे या "पंच" से कुछ चिह्न कर दिये जाते थे। ये सिक्के बहुत अच्छे हैं और भारतवर्ष के सबसे प्राचीन सिके समझे जाते हैं । इन सिकों का प्रचार मौर्य काल में अर्थात् ईसा के पूर्व की तीन चार शताब्दियों में बहुत अधिक था। उस समय हुंडियों का भी चलन था। सौदागर एक दूसरे पर हुंडियाँ काटते थे। इंडियों का उल्लेख जातकों में बहुत आता है। जातकों से पता लगता है कि चोजों की दर नियत न रहती थी। सौदागरों और खरीदारों में खूब मोल भाव होने के बाद सौदा पटता था।
सूद खाना बुरा न समझा जाता था। जातकों और बौद्ध ग्रंथों में सूद की दर का कहीं उल्लेख नहीं है। सूद के लिये “बडि" (वृद्धि) शब्द आया है। कौटिलीय अर्थशास्त्र (अधि०३, प्रक० ६३) में मासिक सूद की दर सवा रुपए सैकड़े लिखी है। मनुस्मृति में भी यही दर लिखी है और कहा गया है कि इससे अधिक लेनेवाला पाप का भागी है। लोग अपनी रकम या तो घर में रखते थेया जमीन में गाड़ देते थे या किसी मित्र के यहाँ जमा कर देते थे। जो धन जमीन में गाड़ा जाता था, उसका ब्योरा सुवर्णपत्र या ताम्रपत्र पर लिखकर यादगार के लिये रख छोड़ते थे । ____ व्यापारिक मार्ग-जातकों और अन्य बौद्ध ग्रन्थों से उस समय के व्यापारिक मार्गों का भी पता लगता है। निम्नलिखित मार्गों से व्यापारी एक जगह से दूसरी जगह आते जाते थे।
(१) उत्तर से दक्षिण-पश्चिम को-यह मार्गश्रावस्ती से प्रतिष्ठान (पैठान) को जाता था। इस पर साकेत, कौशाम्बी, विदिशा, गोनर्द, 'उज्जयिनी और माहिष्मती ये छः बड़े नगर पड़ते थे।
(२) उतर से दक्षिण-पूर्ष को यह मार्ग श्रावस्ती से राजShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com