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बौद्ध-कालीन भारत
२४२ ऐसी थीं, जो व्यापार और शस्त्र दोनों से अपनी जीविका चलाती थीं; अर्थात् वे क्षत्रिय और वैश्य दोनों का कार्य करती थीं (अधि०११, प्रक० १६०)। कौटिलीय अर्थशास्त्र के इन उल्लेखों से पता चलता है कि प्राचीन समय में सहयोग का प्रचार कितना अधिक था; और राजा तथा प्रजा दोनों में श्रेणी अथवा संघ की प्रतिष्ठा कितनी अधिक थी। यह भी सूचित होता है कि उन दिनों भारतवासी मिलकर काम करना अच्छी तरह जानते थे ।
जातकों से पता लगता है कि उस समय व्यापारी लोग साझे में भी काम करते थे। “चुल्लसेटि जातक" में लिखा है कि बनारस के सौ सौदागरों ने आपस में साझा करके एक जहाज़ का माल खरीदा था । "कूटवनिज जातक" में लिखा है कि दो सौदागर आपस में साझा करके ५०० गाड़ियों पर माल लादकर बनारस से बेचने के लिये रवाना हुए थे। "सुहनु जातक" में लिखा है. कि उत्तर के घोड़ बेचनेवाले सौदागर एक साथ मिलकर रोजगार करते थे। "बावेरु जातक" में लिखा है कि यहाँ के सौदागर लोग एक साथ जाकर बावेरु में व्यापार करते थे और भारतवर्ष के विचित्र पक्षी बड़े दाम पर बेचते थे । “महावणिक जातक' में भी लिखा है कि कई सौदागर एक साथ मिलकर साझे. में सौदा बेचते थे। कौटिलीय अर्थशास्त्र (अधि०३, प्रक० ६६) में भी साझे में काम करने की प्रथा का वर्णन है। इस तरह के. काम करने को "संभूय-समुत्थान" कहते थे।
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