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प्राचीन बौद्ध साहित्य
पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमा पर फारस का अधिकार था; इसलिये खरोष्ठी लिपि का प्रचार कदाचित् पहले पहल वहीं हुआ होगा । पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के मानसेहरा और शहबाजगढ़ी नामक दो स्थानों पर अशोक के चतुर्दश शिलालेख इसी लिपि में हैं। उसके बाकी और लेख प्राचीन ब्राह्मी लिपि में मिलते हैं । यही वह लिपि है, जिससे देवनागरी तथा उत्तरी और पश्चिमी भारत की वर्तमान लिपियाँ निकली हैं। ___ ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों के अलग अलग विचार हैं । किसी का मत है कि यह लिपि फिनीशयन लिपि से, किसी का मत है कि सेमेटिक लिपि से और किसी का मत है कि अरमनी या मिस्त्री लिपि से निकली है । केवल कनिंघम साहेब ने इसे भारत की प्राचीन चित्र-लिपि (Hieroglyphics) का विकृत रूप कहा है । कुछ वर्ष हुए, पं० श्यामशास्त्री ने “इंडियन एंटिक्केरी" (भाग ३५) में यह निश्चित किया था कि भारतवर्ष की प्राचीन ब्राह्मी लिपि में अक्षरों की आकृतियाँ तंत्रों से ली गई हैं । ब्राह्मी अक्षरों की उत्पत्ति चाहे जहाँ से हो, पर इसमें कोई संदेह नहीं कि प्राचीन बौद्ध काल में लिखने का रवाज काफी था । बौद्ध ग्रंथों से यह बात पूरी तरह से सिद्ध होती है ।
* ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के बारे में निम्नलिखित ग्रंथ देखने योग्य है- ' (१) राइज डेविड्स-“बुद्धिस्ट इंडिया' । (२) पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा-"प्राचीन लिपि-माला”। (३) पं० श्यामशास्त्री का लेख-“इंडियन एन्टिक्केरी", ३५ वाँ भाग । (४) ब्यूलर-“ओरिजिन आफ दि ब्राह्मी लिपि ।
(५) ब्यूलर-“इंडियन पेलियोग्राफी' । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com