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बौद्ध-कालीन भारत
२४४ शल्दों में "र" होता था; उसमें "श, ष, स' भी रहते थे और उसके शब्दों के रूप संस्कृत शब्दों के रूपों से अधिक मिलते जुलते होते थे । उज्जैनी या मध्य देश की भाषा में "र" और "ब" दोनों होते थे। पर मागधी या पूर्वी भाषा में "र" के स्थान पर सदा "ल" बोला जाता था; जैसे,-राजा के स्थान पर लाजा । इन प्रान्तिक भेदों से सूचित होता है कि अशोक के समय में प्रान्तीय भाषाओं के साथ साथ एक ऐसी भाषा भी प्रचलित थी, जिसे सब प्रांत के शिक्षित समझ सकते थे। यही भाषा उस समय की राष्ट्रीय भाषा थी। अशोक के साम्राज्य का शासन कार्य इसी भाषा में होता था । गौतम बुद्ध के समय में भी कुछ इसी तरह की भाषा प्रचलित थी, क्योंकि ई० पू०४८७ से (जब कि गौतम बुद्ध का निर्वाण हुआ) ई० पू० २३२ तक (जब कि अशोक की मृत्यु हुई) बोलने की भाषा में बहुत अधिक अन्तर नहीं हो सकता था । अतः उन दिनों इसी भाषा के भिन्न भिन्न रूप बोले जाते थे।
अब हम प्राचीन बौद्ध काल के अक्षरों के बारे में कुछ लिखना चाहते हैं। भारतवर्ष के सब से प्राचीन अक्षर जो अब तक मिले हैं, अशोक के शिलालेखों के अक्षर हैं, जो ईसा के पूर्व तीसरी शताब्दी में लिखे गये थे। ये शिला-लेख दो जुदा जुदा अक्षरों में हैं। एक तो आजकल की अरबी लिपि की तरह दाहिनी ओर से बाई ओर को और दूसरे आधुनिक देवनागरी लिपि की तरह बाई ओर से दाहिनी ओर को लिखे जाते थे । पहले प्रकार के अक्षर “खरोष्ठी" और दूसरे प्रकार के “ब्राह्मी" कहलाते थे। "खरोष्ठी" अक्षर प्राचीन एरमेइक (Aramic) लिपि से निकले थे । ईसा पूर्व छठी और पाँचवीं शताब्दियों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com