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बौद्ध-कालोन भारत
२४० हर प्रकार की गाड़ियाँ, पहिए, जहाज, नावें आदि बनानेवाले तथा हर प्रकार का काठ का काम करनेवाले कारीगर शामिल थे; (२) कम्मार (कर्मकार), जिनमें लोहे, चाँदी, सोने, ताँबे आदि हर प्रकार की धातु का काम करनेवाले कारीगर शामिल थे; (३) चर्मकार (चमड़े का काम करनेवाले); (४) रंगरेज; (५)हाथीदाँत का काम करनेवाले; (६) जौहरी; (७) मछुए; (८) कसाई; (९) संवाहक (मालिश करनेवाले) या नाई; (१०) माली; (११) मल्लाह; (१२) टोकरे बनानेवाले; (१३) चित्रकार; (१४) जुलाहे; (१५) कुम्हार; (१६) तेली; (१७) अन्न बेचनेवाले (१८)किसान; (१९) संगतराश (पत्थर पर नकाशी करनेवाले); (२०) डाकू
और लुटेरे; (२१) हाथीसवार; (२२) घुड़-सवार; (२३) रथी (२४) धनुर्धारी; (२५) पाचक; (२६) धोबी; और (२७) बाँस की चीजें बनानेवाले । इनमें से प्रत्येक का समाज या श्रेणी अलग अलग थी।
ऊपर जो पेशे दिये गये हैं, उनमें से कुछ तो पुश्तैनी थे और कुछ हर एक जाति के लोग कर सकते थे। जो पेशे पुश्तैनी थे, उनके समाज या श्रेणियाँ औरों की अपेक्षा अधिक सुसंघटित थीं। हर एक श्रेणी का अगुआ "जेट्ठक" ( ज्येष्ठक ) कहलाता था । प्रायः एक श्रेणी के लोग एक ही जगह पर रहते थे; और वह स्थान, ग्राम या महल्ला उन्हीं के नाम से पुकारा जाता था । यथा-"दन्तकार वीथी" ( हाथीदाँत का काम करनेवालों की गली); "बडिकि गामो” (बढ़इयों का गाँव ); "कम्मार गामो" (सुनारों का गाँव ) आदि । कभी कभी ये गाँव बहुत बड़े होते थे और उनमें एक ही पेशे के कई हजार लोग बसते थे। जातकों
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