________________
२३९
सांपत्तिक अवस्था बनाते थे। उन दिनों बिना आपस में सहयोग किये व्यापारियों का काम भी न चल सकता था। चोर डाकुओं से वे अकेले अपनी रक्षा न कर सकते थे। चोर और डाकू दल बाँधकर चोरी करने और डाका डालने के लिये निकलते थे। उनके अत्याचारों से बचने के लिये व्यापारियों को भी समूह बनाकर यात्रा करनी पड़ती थी। डाकुओं के दलों का हाल जातकों में प्रायः मिलता है। "सत्तिगुम्ब जातक" में एक ऐसे गाँव का उल्लेख है, जिसमें पाँच सौ डाकू एक मुखिया के नीचे दल बाँधफर रहते थे। इस तरह के दलबन्द डाकुओं का मुकाबला व्यापारी और पेशेवाले तभी कर सकते थे, जब वे भी समाज या श्रेणी बना कर एक दूसरे की सहायता करते। ऐसे समाजों या श्रेणियों का उल्लेख जातकों में कई जगह आया है।
हर एक पेशेवाले के अलग समुदाय को “श्रेणी" कहते थे। श्रेणी का उल्लेख केवल बौद्ध ग्रन्थों में ही नहीं, बल्कि सूत्रों, स्मृतियों और प्राचीन शिलालेखों में भी आया है । प्रायः जितने प्रकार के व्यवसायी और व्यापारी थे, सब श्रेणी-बद्ध थे। “मूगपक्ख जातक" में अठारह श्रेणियों के नाम आये हैं । इससे मालूम होता है कि प्राचीन बौद्ध काल में साधारण तौर पर अठारह प्रकार के व्यवसाय और व्यापार होते थे। ये अठारह प्रकार के व्यवसाय कौन थे, इसका निश्चय करना संभव नहीं है। पर सब ग्रंथों में जितने प्रकार के व्यवसायों का उल्लेख आया है, उन सब का संग्रह करनेसे अठारह से अधिक व्यवसायों का पता लगता है। इस तरह से संग्रह किये हुए व्यवसायों के नाम इस प्रकार हैं-(१) वड्डकि (वर्धकी) अर्थात् बढ़ई, जिनमें
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com