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सांपत्तिक अवस्था गृह को जाता था। यह मार्ग सीधा न था, बल्कि पहाड़ की तराई से होकर जाता था। इस पर कपिलवस्तु, कुसिनारा, पावा, हत्थि-गाम, भण्डगाम, वैशाली, पाटलिपुत्र और नालन्द पड़ते थे। यह मार्ग कदाचित् गया तक चला जाता था; और वहाँ जाकर एक दूसरी सड़क से मिलता था, जो कदाचित् समुद्र के किनारे पर बसे हुए ताम्रलिप्त (तामलूक) नगर से बनारस को जाती थी।
(३) पूर्व से पश्चिम को-पूर्व से पश्चिम का रास्ता प्रायः नदियों के द्वारा था। गंगा में सहजाति तक और यमुना में कौशाम्बी तक व्यापारियों की नावे चलती थीं। वहाँ से वे खुश्की के रास्ते सिन्ध और सौवीर (सूरत) तक जाते थे।
(४) पूर्व से उत्तर-पश्चिम को-एक मार्ग श्रावस्ती या विदेह से तक्षशिला होता हुआ सोधा गन्धार को जाता था। यह आगे जाकर उस सड़क से मिल जाता था, जो गन्धार से मध्य तथा पश्चिमी एशिया को जाती थी। इस मार्ग की एक शाखा बनारस भी जाती थी। यह मार्ग लगभग एक हजार मील लम्बा था। प्राचीन बौद्ध काल में यह मार्ग बहुत सुरक्षित रहता था। इस पर चोरी या डाके का कोई डर न था। जातकों से पता लगता है कि ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बालक इस पर बड़ी बड़ी यात्राएँ बिना किसी भय के अकेले करते थे; और विद्या पढ़ने के उद्दश्य से बहुत दूर दूर से तक्षशिला में आते थे।
इनके सिवा व्यापारियों का मगध से सौवीर (सूरत ) को, मरुकच्छ (भड़ौच), बनारस और चम्पा से बरमा को और दक्षिण से बावेरु (बेबिलोन ) को जाना भी लिखा है। चीन के साथ व्यापार का उल्लेख पहले पहल “मिलिन्द पन्हो" में मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com