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सांपत्तिक अवस्था 'चारियों की सहायता से उन सब का नाम धाम, वस्तु का नाम, भाने का स्थान प्रादि लिख लेता था । तब माल पर मुहर लगाई जाती थी; और इसके बाद वे नगर में घुसने पाते थे। अलग अलग चीजों के लिये चुंगी की अलग अलग दर नियत थी।
विनयपिटक, जातक और कौटिलीय अर्थशास्त्र से पता लगता है कि नाना प्रकार के सुन्दर, सुखद और सुहावने उद्यान, वापी और तड़ाग नगरों की शोभा बढ़ाते थे । जातकों में "सत्त-भूमक-पासाद" (सप्तभूमिक प्रासाद) का कई बार उल्लेख
आया है, जिससे पता लगता है कि उस समय सात सात मंजिल के मकान भी होते थे। विनयपिटक से पता लगता है कि उस समय स्नानागार (हम्माम) भी बनाये जाते थे, जहाँ जाकर नाग'रिक लोग मालिश कराते थे और गरम तथा ठंढे जल से स्नान करते थे । संभव है कि तुर्कों ने हम्माम में नहाने की प्रथा यहीं से ली हो। स्नान के लिये जगह जगह बड़े बड़े तालाब भी रहते थे। नगर में जूएखाने या द्यूतगृह भी रहते थे । जूआ कदा'चित् पासे से खेला जाता था। वेश्याओं के रहने के लिये एक अलग स्थान नियत था । वेश्याओं की देख रेख करनेवाला अफसर "गणिकाध्यक्ष" कहलाता था (अधि० २, प्रक० ४४) । नगर में 'शूना या बूचड़खाने भी होते थे। बूचड़खानों का अफसर “शूनाध्यक्ष" कहलाता था (अधि० २, प्रक० ४३)। नगर में होलियाँ (पानागार) भी होती थीं, जिनमें जाकर नागरिक शराब पीते थे। हौलियाँ कितनी कितनी दूर पर होनी चाहिएँ, उनमें कैसा प्रबंध होना चाहिए और वे कितनी देर से कितनी देर तक खुली रहनी चाहिए, इन सब बातों के भी नियम थे । इस महकमे
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