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बौद्ध-कालीन भारत
२२४ समान अधिकार होता था। चरागाहों में सब लोग अपने गायबैल चरा सकते थे; और जंगलों से जलाने की लकड़ी काट सकते थे। गाँव में हर एक गृहस्थ के गाय-बैल अलग अलग होते थे; पर सब के चरने का स्थान एक ही रहता था । जब खेत कट जाते थे, तब चौपाये उनमें चरने के लिये छोड़ दिये जाते थे। पर जब फसल खड़ी रहती थी, तब सब चौपाये एक साथ “गोपालक" की रक्षा में चरागाह में चरने के लिये भेजे जाते थे।
कुल खेत एक ही समय में जोते बोये जाते थे। सिंचाई के लिये ग्राम पंचायत की ओर से नालियाँ या कूएँ खुदवाये जाते थे। गाँव के मुखिया की देख रेख में नियम के अनुसार खेतों में पानी बाँटा जाता था । किसान अपने अपने खेत के चारो ओर अलग अलग मेंड़ या घेरा न बना सकते थे। सिर्फ एक घेरा होता था, जिसके अन्दर गाँव के कुल खेत आ जाते थे। खेत प्रायः उतने ही हिस्सों में बँटे रहते थे, जितने कि ग्राम में कुटुम्ब होते थे । हर एक कुटुम्ब, फसल कटने पर, अपने हिस्से की पैदावार ले लेता था । कुल खेतों पर पंचायत का अधिकार रहता था । कोई किसान अपने हिस्से का खेत किसी बाहरी के हाथ न तो बेच सकता था, न रेहन रख सकता था। कम से कम बिना ग्राम पंचायत की
आज्ञा के वह ऐसा कदापि न कर सकता था। कोई मनुष्य बिना ग्राम पंचायत की आज्ञा लिये हुए अपना खेत किसी के नाम वसीयत न कर सकता था; यहाँ तक कि वह अपने खेत का बँटवारा अपने कुटुम्बवालों में भी न कर सकता था। इस सम्बन्ध के मामले ग्राम पंचायत सेतै होते थे। किसान की मृत्यु के बाद उसका बड़ा लड़का कुटुम्ब की देख रेख करता था । यदि कुटुम्ब की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com