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सांपरिक अवस्था
ग्राम का मुखिया (ग्राम-भोजक) या राजा के महामात्य करते थे। कभी कभी राजा किसी ग्राम का कर छोड़ भी देता था, या उसे किसी व्यक्ति अथवा संघ के नाम लिख देता था। ___यह उन ग्रामों का हाल है, जो राजाओं के अधीन होते थे। पर किसी जातक या बौद्ध ग्रंथ से यह नहीं सूचित होता कि प्राचीन बौद्ध काल के प्रजातन्त्रों या गण राज्यों में भी ग्रामवासियों से इसी प्रकार दशमांश कर वसूल किया जाता था। हाँ, अशोक के रुमिन्देईवाले स्तंभलेख से यह अवश्य सूचित होता है कि कदाचित् शाक्यों के गण-राज्य में इस तरह का कर वसूल किया जाता था । स्वयं अशोक ने लुम्बिनी ग्राम का कर माफ कर दिया था। कदाचित् यह कर उस प्राचीन समय से चला आ रहा था, जिस समय लुम्बिनी ग्राम शाक्यों के गण-राज्य में था। इसी लुम्बिनी ग्राम में या इसके पास भगवान् बुद्ध का जन्म हुआ था । पर इसके सिवा और कोई ऐसा प्रमाण नहीं है, जिससे कहा जा सके कि शाक्यों, मल्लों, लिच्छवियों, कोलियों आदि के गण-राज्यों में किसानों पर किसी प्रकार का कर लगाया जाता था। परन्तु फिर भी राज-व्यय के लिये किसी न किसी प्रकार का कर अवश्य रहा होगा।
गाँवों में लोग एक साथ रहते थे। गाँवों के सब घर एक दूसरे से मिले रहते थे। बीच बीच में तंग गलियाँ रहती थीं। जातकों से पता लगता है कि प्रत्येक गाँव में तीस से सौतक कुटुम्ब रहते थे। जातकों में कई प्रकार के ग्राम लिखे गये हैं; यथा-जानपद ग्राम, जो नगरों के आस पास होते थे; और पञ्चन्त (प्रात्यन्त) ग्राम, जो सीमाओं के पास होते थे। ग्रामों के चारो ओरखेत, जंगल
और चरागाह होते थे। उन चरागाहों और जंगलों पर सब का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com