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बारहवाँ अध्याय प्राचीन बौद्ध काल की सांपत्तिक अवस्था प्राचीन बौद्ध काल की सांपत्तिक अवस्था का निम्न लिखित वर्णन जातक, सुत्तपिटक, विनयपिटक, कौटिलीय अर्थशास्त्र और यूनानियों के भारत वृत्तान्त के आधार पर किया गया है। हम पहले पाठकों को ग्रामों की सांपत्तिक स्थिति का दिग्दर्शन कराते हैं।
ग्रामों की सांपत्तिक अवस्था-जातकों से प्रकट है कि प्राचीन बौद्ध काल में ज़मींदारी की प्रथा नहीं थी। किसान ही अपनी भूमि के मालिक होते थे । राजा साल में केवल एक बार किसानों से उपज का दशमांश कर के तौर पर वसूल करता था। बस भमि पर राज्य का इससे अधिक कोई अधिकार न था। जो भूमि स्वामि-रहित हो जाती थी या जिसका कोई मालिक न होता था, वह राजा के अधिकार में चली जाती थी। इसी तरह से वनभूमि भी राजा की संपत्ति मानी जाती थी; और वह उसका जैसा चाहता था, वैसा प्रबंध करता था। कभी कभी विशेष अवसरों पर, जैसे कि राजकुमार के जन्मोत्सव पर, किसान लोग राज को धन भेंट करते थे। राजा प्रायः ग्राम के आस पास शिकार खेलने जाते थे; इसलिये किसानों को, ग्राम के एक भाग में, मृगों के लिये चरागाह छोड़ देना पड़ता था, जिसमें उन्हें राजा के लिये शिकार न ढूँढना पड़े । उपज का जो दशमांश राजा को कर रूप में दिया जाता था, उसके मान का निश्चय ग्राम की पंचायत,
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