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सामाजिक अवस्था
उस समय ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वणों के सिवा बहुत सी नई जातियाँ उत्पन्न हो गई थीं। इन जातियों में मुख्य येथीं-चाण्डाल, वैण, पुक्कस, सूत, अम्बष्ठ, उग्र, निषाद, पारसव, मागध और आयोगव आदि । सूत्रकारों ने इन जातियों को चार वर्षों में से निकालने का यत्न किया है । उदाहरणार्थ उन्होंने चाण्डाल की उत्पत्ति शूद पुरुष और ब्राह्मण स्त्री से मानी है। चाण्डाल, वैण, पुकस और निषाद का उल्लेख बौद्ध जातकों में भी आया है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, ये जातियाँ वास्तव में उन अनार्यों की थीं, जिन्हें आर्यों ने हराया था और जो उस समय तक असभ्य थे।
धर्म-सूत्रों में वेद पढ़ना, यज्ञ करना और दान देना आदि 'द्विजों अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनों के लिये कहा गया है । ब्राह्मणों का विशेष कार्य यह था कि वे दूसरों के लिये यज्ञ करते थे, दान लेते थे और वेद पढ़ाते थे । आवश्यकता पड़ने पर वे खेती और व्यापार भी कर सकते थे। मालूम होता है कि परिश्रम के कामों से बचने और दूसरों को आय पर गुजर करने के कारण ब्राह्मण लोग आलसी हो गये थे और विद्याध्ययन से भी मुँह मोड़ने लगे थे। वशिष्ठ ने इस बुराई और अन्याय को असह्य समझकर लिखा है--"राजा को चाहिए कि वह उस गाँव को दण्ड दे, जिसमें ब्राह्मण लोग अपने पवित्र धर्म का पालन नहीं करते, वेद नहीं जानते और भिक्षा माँगकर रहते हैं, क्योंकि ऐसा गाँव लुटेरों का पोषण करता है।" क्षत्रियों का यह विशिष्ट कर्तव्य था कि वे लड़ें, विजय करें और राज्य का काम चलावें। वैश्यों का विशेष कर्तव्य व्यापार और खेती करना था। शूद्र तीनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com