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सामाजिक अवस्था जाते हैं; और ज्यों ज्यों वे बड़े होते जाते हैं, त्यों त्यों पहलेवाले गुरु से अधिक योग्य गुरु उन्हें मिलते हैं। उनका निवास नगर के पास किसी वन या उपवन में होता है। वे बड़ी सीधी सादी चाल से रहते हैं और फूस की चटाई अथवा मृगछाला पर सोते हैं । वे मांस-भोजन तथा शारीरिक सुखों से बचते हैं और अपना समय धार्मिक विषयों के अध्ययन में बिताते हैं। सैंतीस वर्ष तक इस प्रकार रह कर वे अपने अपने घर लौट जाते हैं और वहाँ शान्तिपूर्वक शेष आयु बिताते हैं। तब वे उत्तम वस्त्र और आभूषण धारण करते और मांस खाते हैं; पर वह मांस किसी पालतू या लाभदायक पशु का नहीं होता। वे गरम और अधिक मसालेदार भोजन से परहेज करते हैं। वे जितनी चाहें, उतनी स्त्रियों से विवाह कर सकते हैं, जिसमें बहुत सी सन्तति उत्पन्न हो।"
श्रमणों के बारे में मेगास्थिनीज़ कहता है-“वे बनों में रहते हैं; वहाँ पेड़ों की पत्तियाँ तथा जंगली फल-फूल खाते हैं; और पेड़ों की छाल के बने हुए कपड़े पहनते हैं। उनमें से कुछ लोग वैद्य का काम करते हैं। उनकी सर्वोत्तम औषधे मरहम और लेप हैं। सर्व साधारण के कार्यों से रहित होने के कारण वे न तो किसी के मालिक हैं और न किसी के नौकर ।"
योद्धा या क्षत्रिय जाति के बारे में मेगास्थिनीज ने बहुत संक्षेप में लिखा है-“योद्धालोग युद्ध के लिये तैयार किये जाते थे; पर शांति के समय वे आलस्य और तमाशे आदि में जीवन बिताते थे । कुल सेना का खर्च सरकारी खजाने से दिया जाता था।"
किसान, चरवाहे और शिल्पकार ये तीनों वैश्य और शूद्र वणों के अन्दर आ सकते हैं। मेगास्थिनीज़ ने इनका बहुत
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