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बौद्ध-कालीन भारत
२१६ जानवरों को पकड़ना और मारना लिखा है। इससे पता लगता है कि वे शिकार वगैरह करके अपना पेट पालते थे । जातकों में "नेसाद" नाम की एक और हीन जाति का उल्लेख है । मनुस्मृति में जिस “निषाद" जाति का उल्लेख है, वह यही “नेसाद" जाति है । मनुस्मृति के अनुसार उनका काम मछलियाँ मारना था । जातकों में उनका काम शिकार करना लिखा है। अतः सिद्ध है कि वे मछली मारकर और शिकार करके निर्वाह करते थे । चाण्डालों की तरह उनसे भी घृणा का व्यवहार किया जाता था और वे भी नगर के बाहर अलग गाँव में रहते थे। वह गाँव उनके नाम से “नेसादगाम” कहलाता था। इसके सिवा "वेण” (बाँस की चीज़ बनानेवाले) "रथकार" (रथ बनानेवाले), "चम्मकार" (चमार), "नहापित" (नाई), "कुंभकार" (कुम्हार), "तन्तवाय" (जुलाहे) आदि भी हीन जाति के गिने जाते थे।
मेगास्थिनीज़ के अनुसार सामाजिक दशा-जातकों और बौद्ध ग्रंथों में जैसी सामाजिक दशा का वर्णन पाया जाता है, प्रायः वैसी ही सामाजिक दशा मेगास्थिनीज़ के भारत-वर्णन में भी मिलती है। मेगास्थिनीज़ ने भारतवासियों को सात जातियों में बाँटा है--प्रथम जाति ब्राह्मणों की, दूसरी श्रमणों की, तीसरी योद्धाओं की, चौथी किसानों की, पाँचवीं चरवाहों और शिकारियों की, छठी शिल्पकारों की और सातवीं दूतों की थी। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ये सातों जातियाँ ऊपर लिखे हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारो वर्णों में आ जाती हैं।
ब्राह्मणों के बारे में मेगास्थिनीज़ लिखता है-"ब्राह्मणों के बालक एक मनुष्य के उपरान्त दूसरे मनुष्य की रक्षा में रक्खे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com