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सामाजिक षस्था पुत्रों को विद्या पढ़ने के लिये तक्षशिला भेजा था । “अट्टान जातक" में लिखा है कि एक सेठ का लड़का और एक क्षत्रिय कुमार एक ही साथ गुरु के यहाँ पढ़ते थे । प्रायः हर एक व्यापार या उद्यम करनेवाले गृहपति की अलग श्रणी या समूह था ।
शूद्र-बौद्ध ग्रंथों में "सुद्ध” (शूद्र) शब्द भी आता है; पर इससे यह नहीं सिद्ध होता कि शूद्रों की कोई अलग जाति थी। असभ्य अनार्यों को ही सभ्य आर्य “शूद्र" कहते थे। जातकों में उनके लिये प्रायः "हीन जाति" शब्द का प्रयोग किया गया है। इन हीन जातियों में कुछ तो बहुत ही असभ्य और जंगली थीं। ऐसी एक हीन जाति "चाण्डालों” की थी। चाण्डाल लोग नगर के बाहर एक गाँव में रहते थे। वह गाँव उनके नाम से "चण्डाल गाम" कहलाता था । उस गाँव में और कोई जाति न रहती थी। “चित्तसंभूत जातक" तथा "मातंग जातक" से पता लगता है कि उनको छूना तो दूर रहा, उन्हें देखना भी पाप समझा जाता था। उनकी छूई हुई चीज अशुद्ध मानी जाती थी। उनकी बोली भी भिन्न होती थी। वे अपनी बोली से झट पहचान लिये जाते थे। “चित्तसंभूत जातक" से पता लगता है कि दो चाण्डाल ब्राह्मण के वेश में विद्याध्ययन के लिये तक्षशिला गये थे। पर एक दिन वे अकस्मात् अपनी बोली (चाण्डाल-भाषा) से पहचान लिये गये । चाण्डालों के साथ साथ "पुक्कुसों" का भी नाम आता है। मनु-स्मृति में पुकुस की जगह “पुक्कस" लिखा मिलता है । पुक्कुस भी अनार्य जाति के थे । समाज में उनका दर्जा बहुत ही नीचा था । "सोलवीमंस जातक" से पता लगता है कि वे फूल तोड़कर निर्वाह करते थे। मनुस्मृति में उनका काम गुफा में रहनेवाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com