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सामाजिक अवस्था
इसमें कोई सन्देह नहीं कि उस समय क्षत्रिय लोग विद्या, ज्ञान और तपस्या में ब्राह्मणों का मुकाबला करते थे। पर बौद्ध ग्रंथों की यह बात कि क्षत्रिय ब्राह्मणों से भी श्रेष्ठ थे, ठीक नहीं जंचती; क्योंकि बौद्ध ग्रंथ अधिकतर क्षत्रियों के लिखे हुए हैं। भिक्षुओं का अधिकांश भिक्षु-संप्रदाय में आने के पहले क्षत्रिय वर्ण का ही था। उन लोगों का भिक्षु होने के बाद भी अपने पूर्व वर्ण की प्रशंसा करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसके सिवा बौद्ध भिक्षु ब्राह्मणों के कट्टर विरोधी थे। अतः इस विषय में बौद्ध ग्रंथों को प्रामाणिक मानना उचित नहीं जान पड़ता ।
क्षत्रिय-जातक ग्रंथों से पता लगता है कि "क्षत्रिय” कोई अलग जाति न थी । शासक या राजा, और जिनसे उनका पारिवारिक सम्बन्ध था, सब क्षत्रिय कहलाते थे । क्षत्रियों के अलग अलग कुल थे, जो अलग अलग स्थानों में राज्य करते थे। बाद को यही क्षत्रिय कुल एक जाति में परिणत हो गये। राज्य के जितने बड़े बड़े ओहदे थे, वे सब इन्हीं क्षत्रियों के हाथ में थे। क्षत्रिय लोग अपने रक्त की शुद्धता पर बड़ा जोर देते थे। जो क्षत्रिय दूसरे वर्ण या जाति में विवाह-सम्बन्ध करता था, वह हीन सममा जाता था। क्षत्रिय पुरुष और ब्राह्मण स्त्री के विवाह-सम्बन्ध से जो सन्तान होती थी, वह ब्राह्मण समझी जाती थी, क्षत्रिय नहीं। इसी तरह से ब्राह्मण पुरुष और क्षत्रिय स्त्री के विवाह-सम्बन्ध से जो सन्तान होती थी, वह भी ब्राह्मण ही समझी जाती थी, क्षत्रिय नहीं । इससे सूचित होता है कि क्षत्रिय लोग रक्त की शुद्धता का बहुत ध्यान रखते थे। उस समय क्षत्रिय लोग विद्या, बुद्धि और
आत्मिक ज्ञान में ब्राह्मणों से कम नहीं होते थे। बुद्ध भगवान और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com