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राजनीतिक विचार राज्यों की शासन-व्यवस्था कैसी थी, अर्थात् उनका शासन किस प्रकार होता था, इसके सम्बन्ध में प्रत्यक्ष रीति पर किसी ग्रन्थ में कुछ नहीं लिखा है । कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में संघों या गण-राज्यों की शासन प्रणाली के बारे में कुछ नहीं लिखा है । अतएव संघों या गण-राज्यों की शासन-व्यवस्था के बारे में कुछ लिखने के लिये हमें केवल अप्रत्यक्ष प्रमाणों का सहारा लेना पड़ता है। इस सम्बन्ध में मुख्य प्रमाण बौद्धों का भिक्षु-संघ है; क्योंकि बुद्ध भगवान ने अपने भिक्षु-संघ की व्यवस्था इन्हीं राजनीतिक संघों या गण राज्यों की शासन-व्यवस्था के आदर्श 'पर की थी। बुद्ध भगवान् शाक्यों और लिच्छवियों के प्रजातन्त्र
या गण-राज्य में पाले पोसे गये थे, उनकी हर एक बात से पूरी -तरह परिचित थे और उनकी शासन-व्यवस्था अच्छी तरह जानते थे। भिक्षु-संघ स्थापित करते समय उनकी दृष्टि के सामने शाक्यों और लिच्छवियों के संघ या गण राज्य का आदर्श रहा होगा और उन्होंने अपने भिक्षु-संघ की शासन-व्यवस्था राजनीतिक संघ या गण-राज्य की शासन-व्यवस्था के ढंग पर की होगी। अतएव भिक्षु-संघ की शासन-व्यवस्था से हम राजनीतिक संघ या गण-राज्य की शासन-व्यवस्था का अनुमान कर सकते हैं। विनय-पिटक में भिक्षु-संघ की व्यवस्था का वर्णन बहुत विस्तार के साथ दिया गया है। यहाँ उसी के आधार पर मुख्य मुख्य बातें दी जाती हैं
परिषद्-प्रत्येक संघ में एक परिषद् होती थी। इस परिषद् की बैठक कब होनी चाहिए, कैसे होनी चाहिए, किन किन लोगों को उसमें राय देनी चाहिए और कैसे राय देनी चाहिए
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