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ग्यारहवा अध्याय प्राचीन बौद्ध काल की सामाजिक अवस्था
चार वर्ण-बुद्ध के समय में तथा उनके बाद भी प्राचीन भारत की सामाजिक दशा कैसी थी, इसकी कुछ कुछ मलक जातक कथाओं और प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में जहाँ तहाँ दिखलाई पड़ती है । इन ग्रन्थों से पता लगता है कि उस समय का समाज चार वर्षों में विभक्त था। चारो वर्णो का भिक्षु-संप्रदाय के साथ जो सम्बन्ध था, उसके बारे में बुद्ध भगवान ने एक स्थान पर अपने शिष्यों से कहाथा-"भिक्षुओ, जिस प्रकार गंगा, यमुना आदि बड़ी बड़ी नदियाँ समुद्र में मिलने पर अपना नाम और रूप खो देती हैं और समुद्र के रूप में बदल जाती हैं, उसी प्रकार खत्तिय ( क्षत्रिय), बाम्हण (ब्राह्मण) वेस्स (वैश्य ) और सुद्ध (शूद्र) जब घर छोड़कर भिक्षु-सम्प्रदाय में आते हैं, तब अपना नाम और वर्ण खो देते हैं और समण (श्रमण ) कहलाने लगते हैं ।" एक दूसरे स्थान पर बुद्ध भगवान कहते हैं-“हे राजन्, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं। इन चारों वर्गों में क्षत्रिय और ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं ।।
ऊँच नीच का भाव-कुछ लोगों का विश्वास है कि बुद्ध भगवान ने वर्ण-विभाग बिलकुल उठा दिया था; पर वास्तव में यह
• विनयपिटक (चुल्लवग्ग )-६.१-४, + मज्झिम-निकाय ( करणकथाल मुत्त)
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