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राजनीतिक विचार के संघ “श्रेणी" कहलाते थे। ई० पू० ५०० से ई० ५० ६०० तक भारतवर्ष में इस तरह के अनेक व्यापारिक संघ या श्रेणियाँ थीं। जितने प्रकार के व्यवसाय और व्यापार थे, प्रायः उतने ही प्रकार की श्रेणियाँ भी थीं। हर एक व्यापार या पेशेवाले अपना अलग समाज या श्रेणी बनाये हुए थे। इन सब का सविस्तर वर्णन बारहवें अध्याय में किया जायगा ।
राजनीतिक संघ-अब हम उन संघों के बारे में लिखते हैं, जो राजनीतिक उद्देश्य से बनाये गये थे। इन राजनीतिक संघों को हम प्रजातंत्र या गण-राज्य कह सकते हैं । राजनीतिक संघों के बारे में याद रखने की बात यह है कि वे किसी एक मनुष्य के अधीन नहीं, बल्कि एक विशेष समुदाय के अधीन थे। यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि किस प्रमाण पर यह कहा जाता है कि प्राचीन काल में राजनीतिक संघ या प्रजातन्त्र राज्य थे ? इसके उत्तर में हम यहाँ पर जैन धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ “आयारंग-सुत्त" ( आचारांग सूत्र ) का हवाला देते हैं । उस ग्रन्थ में जैन भिक्षुओं और भिक्षुनियों के बारे में नियम दिये हैं। उन नियमों में कुछ नियम इस सम्बन्ध में हैं कि भिक्षुओं तथा भिक्षुनियों को कहाँ न जाना चाहिए । भिक्षुओं के लिये जिन जिन स्थानों में जाने की मनाही थी, वे निम्नलिखित हैं-(१) अराजक राज्य ( जहाँ कोई राजा न हो); युवराजक राज्य ( जहाँ का राजा बिलकुल लड़का हो); द्विराज्य (जहाँ दो राजाओं का राज्य हो) और गणराज्य ( जहाँ गण या समूह का राज्य हो)। इससे प्रकट है कि
. पाली टेक्स्ट सोसाइटी से प्रकाशित; २. ३.१-१०.
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