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बौद्ध-कालीन भारत
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गरण-राज्य एक प्रकार के राजनीतिक संघ या प्रजातन्त्र राज्य थे । प्राचीन बौद्ध काल में प्रजातंत्र या गरण राज्य का होना अवदान शतक नामक एक दूसरे बौद्ध ग्रन्थ से भी सिद्ध है । यह ग्रन्थ ० पू० १०० के लगभग का है । इसके ८८ वें अवदान में लिखा है कि कुछ सौदागर मध्य देश से दक्षिण की ओर व्यापार करने के लिये गये थे। जब वहाँ उनसे पूछा गया कि तुम्हारे देश में किस प्रकार का राज्य है, तब उन्होंने उत्तर दिया – “ केचिद्दशा गणाधीनाः केचिद्राजाधीना इति" अर्थात् “कुछ देश गणों के अधीन हैं और कुछ राजाओं के अधीन " । यहाँ राजाधीन देश से एकतन्त्र राज्य का और गणाधीन देश से गण-राज्य या प्रजातन्त्र राज्य का तापय है । पाणिनि का एक सूत्र “ जनपद शब्दात् क्षत्रियादन् " है । इसका अर्थ यह है कि " अपत्य अर्थ में अच् प्रत्यय उसी शब्द के साथ लगता है, जो देश और क्षत्रिय दोनों का बाचक हो ।” इस सूत्र पर कात्यायन का यह वार्तिक है“क्षत्रियादेकराजात् संघप्रतिषेधार्थम्” अर्थात् " अञ् प्रत्यय अपत्य अर्थ में उसी शब्द में लगना चाहिए, जो देश और क्षत्रिय दोनों अर्थों का बोधक हो; पर शर्त यह है कि उस देश में एक राजा का आधिपत्य हो । जिस देश में संघ या समूह का राज्य हो, उस देश के वाची शब्द में अपत्य अर्थ में अञ् प्रत्यय नहीं लग सकता ।” इससे स्पष्ट है कि संघ या गरण-राज्य एक प्रकार के प्रजातन्त्र राज्य थे; अर्थात् उनमें एक मनुष्य का राज्य नहीं, बल्कि समूह का राज्य था । प्राचीन बौद्ध काल के संघों या गण राज्यों की सूची और वर्णन ऊपर आठवें अध्याय में दिया गया है ।
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संघो या गण राज्यों की शासन व्यवस्था-संघों या गणShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com