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बौद्ध-कालीन भारत
२०४ आदि बातों के विशेष नियम बने हुए थे। संघ के कुल भिक्षु इस परिषद् के सभ्य हो सकते थे । उनमें से हर एक को उसमें राय देने का अधिकार था। परिषद् में हर एक सभ्य के लिये अवस्था
और गौरव के अनुसार आसन नियत रहता था। इसके लिये एक विशेष कर्मचारी रहता था, जिसे "आसन-प्रज्ञापक” कहते थे । ___ परिषद् में प्रस्ताव का नियम-जब परिषद् में सब सभ्य जमा हो जाते थे, तब जो सभ्य प्रस्ताव करना चाहता था, वह अपना प्रस्ताव परिषद् के सामने रखता था। प्रस्ताव की सूचना को "ज्ञप्ति" कहते थे। "ज्ञप्ति" के उपरान्त “कर्मवाचा" होती थी; अर्थात् उपस्थित सभ्यों से प्रश्न किया जाता था कि आप लोगों को यह प्रस्ताव स्वीकृत है या नहीं। यह प्रश्न या लो . एक बार किया जाता था या तीन बार । जब प्रश्न एक बार किया जाता था, तब उस कर्म को "ज्ञप्ति-द्वितीय” कहते थे और जब प्रश्न तीन बार किया जाता था, तब उसे "ज्ञप्ति-चतुर्थ" कहते थे। ये सब काररवाइयाँ इस प्रकार की जाती थीं
जब कोई नया व्यक्ति बौद्ध संघ में भर्ती होने के लिये आता था, तब परिषद् के सब सभ्य जमा होकर इस बात पर विचार करते थे कि वह संघ में भर्ती किया जाय या नहीं। उनमें से एक सभ्य यह "ज्ञप्ति" या प्रस्ताव संघ के सामने रखता था-"मैं संघ को यह सूचित करता हूँ कि अमुक नाम का यह व्यक्ति अमुक नाम के उपाध्याय से उपसंपदा (दीक्षा) ग्रहण करके संघ में भर्ती होना चाहता है। वह उपसंपदा ग्रहण करने के लिये संघ की
आज्ञा चाहता है । यदि संघ आज्ञा दे, तो वह भर्ती किया जाय । यदि कोई इस प्रस्ताव के विरुद्ध हो तो बोले ।" इस ज्ञप्ति के बाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com