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धौद्ध-कालीन भारत
१९२ मुद्भावयति; बलोयानबलं हि प्रसते दण्डधराभावे*।" अर्थात् यदि अपराधियों को दण्ड न दिया जाय, तो मात्स्य-न्याय का आचरण होने लगता है; बलवान दुर्बलों को सताने लगते हैं। वाल्मीकीय रामायण में भी "मात्स्य-न्याय" का उल्लेख है। _ "नाराजके जनपदे स्वकं भवति कस्यचित् ।। मत्स्या इव जना नित्यं भक्षयन्ति परस्परम् ॥"
(अयोयाकाण्ड; अध्याय ६७, नेक ३१) अर्थात्-जहाँ राजा नहीं होता, वहाँ कोई मनुष्य अपनी संपत्ति सुरक्षित नहीं रख सकता। मछली के समान. लोग एक दूसरे को खा जाते हैं। __मात्स्य-न्याय के भय से प्रेरित होकर ही लोगों ने प्रारंभ में अपनी रक्षा के लिये राजा या एकतन्त्र राज्य की सृष्टि की थी। ___ राजा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पहली बात यह है कि प्रारंभ में राजा और प्रजा के मध्य एक सामाजिक "समय" या पट्टा हुआ। वह पट्टा यह था कि राजा अपनी प्रजा की रक्षा करे; और प्रजा उसके बदले में उसे कर दे। इसी को अँगरेजी में "सोशल कान्ट्रैक्ट थियरी" (Social Contract Theory ) कहते हैं ।
सामाजिक समय या पट्टा-कौटिलीय अर्थशास्त्र में इस सामाजिक समय या पट्टे के बारे में इस प्रकार लिखा है"मात्स्य-न्याय के कारण अराजकता से दुःखी होकर लोगों ने पहले वैवस्वत मनु को अपना राजा चुना। उन लोगों ने अपने धान्य का छठा भाग तथा अपने पण्य ( माल ) का दसवाँ भाग उसका अंश नियत किया । इस वेतन से भूत (पालित पोषित)
. अर्थशास्त्र, पृ० ६.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com