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राजनीतिक विचार राज्य में लोग एक दूसरे का नाश करने में ही तत्पर रहते हैं। अतएव अराजक (राजा-रहित) राज्य को धिकार है।" (३)
"अतः अपने निज कल्याण के लिये लोगों को चाहिए कि वे किसी मनुष्य को राजा बना लें; क्योंकि जो लोग अराजक राज्य में रहते हैं, वे न तो धन भोग सकते हैं, न स्त्री ।" (१२)
"अराजक राज्य में जो दास नहीं होता, वह दास बना लिया जाता है; और स्त्रियाँ बलपूर्वक हर ली जाती हैं। इसलिये देवताओं ने प्रजा की रक्षा के लिये राजा उत्पन्न किया है।” (१५)
__ “यदि पृथ्वी पर दुष्टों को दण्ड देने के लिये राजा न हों, तो बलवान् मनुष्य निर्बलों को उसी प्रकार खा डालें, जिस प्रकार बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं ।" (१६) ____ "मात्स्य-न्याय"-राजा क्यों अनिवार्य है, यही ऊपर के श्लोकों में बतलाया गया है । इसका निचोड़ यह है कि यदि राजा न हो, तो बलवान् निर्बलों को उसी तरह खा डालें, जिस तरह बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा लेती है । प्राचीन अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्र में इसे "मात्स्य-न्याय" कहा गया है। मनुस्मृति में इस "मात्स्य-न्याय" के बारे में लिखा है
"यदि न प्रणयेद्राजा दण्डं दण्ड्येष्वतन्द्रितः । ___जले मत्स्यानिवाहिंस्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः ।"
अर्थात्-यदि राजा आलस्य-रहित होकर अपराधियों को दण्ड न दे, तो बलवान मनुष्य निर्बलों को उसी तरह मार डालें, जिस तरह बड़ी मछली छोटी मछलियों को निगल जाती है।
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में इसी "मात्स्यन्याय" का उदाहरण इन शब्दों में दिया है-"अप्रणीतो हि मात्स्यन्याय
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