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दसवाँ अध्याय प्राचीन बौद्ध काल के राजनीतिक विचार एक-तन्त्र राज्य-प्रणाली-प्राचीन बौद्ध काल में मुख्यतया दो भिन्न राजनीतिक विचार के लोग थे। एक तो वे थे, जो साम्राज्य या एकतन्त्र प्रणाली पसन्द करते थे और दूसरे वे जो प्रजातन्त्र प्रणाली, गणराज्य अथवा संघ के पक्ष में थे। प्राचीन बौद्ध काल में दोनों विचार जोरों के साथ फैल रहे थे । पर साम्राज्य या एकतन्त्र प्रणाली का पक्ष दिन पर दिन प्रबल हो रहा था। साम्राज्य या एकतन्त्र-राज्य, जैसा कि नाम से सूचित है, एक मनुष्य का राज्य था; और गण राज्य अथवा संघ राज्य किसी समूह या समुदाय का राज्य था। बुद्ध के समय में मगध, कोशल, अवन्ती, वत्स आदि देशों के राज्य एक-तंत्र या राजतंत्र थे। लिच्छवि और मल्ल आदि जातियों के राज्य प्रजातन्त्र थे। बौद्ध ग्रंथों में प्रजातन्त्र राज्य "गण" या "संघ" कहे गये हैं। पहले हम एकतन्त्र या राजतन्त्र राज्य के बारे में कुछ कहना चाहते हैं।
राजा को आवश्यकता इस संबंध में पहला प्रश्न यह उठता है कि प्रारंभ में राजा की आवश्यकता ही क्यों हुई ? अर्थात् राज्य की बागडोर किसी एक मनुष्य के हाथ में दे देना क्यों आवश्यक समझा गया ? इस प्रश्न का उत्तर महाभारत, शान्ति पर्व के ६७ वें अध्याय में इस प्रकार दिया है
"अराजक राज्य में धर्म का पालन नहीं हो सकता। ऐसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com