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बौद-कालीन भारत
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बड़े पण्डित होगमा सुनने के लिये
अदालतों में तीन
लाई जाती थीं। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के यहाँ अपना राजदूत रखता था। राजदूत अपने अपने दरवार को विदेशी राष्ट्रों का हाल चाल और उनके गुप्त समाचार भेजा करते थे। __ न्याय विमाग-मौर्य साम्राज्य में दो प्रकार की अदालतें थीं-एक "धर्मस्थीय" * ( दीवानी) और दूसरी "कण्टकशोधन" + (फौजदारी) । “धर्मस्थीय" अदालतों में तीन "धर्मस्थ” (जज) या तीन “अमात्य" मुकदमा सुनने के लिये बैठते थे, जो धर्मशास्त्र के बड़े पण्डित होते थे। “कण्टक-शोधन" अदालतों में तीन “प्रदेष्टा" या तीन “अमात्य" मुकदमा सुनते थे। "धर्मस्थीय" अदालतें आम तौर पर उन मुकदमों का फैसला करती थीं, जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध या कुछ लोग दूसरे लोगों के विरुद्ध चलाते थे । ऐसी अदालतें सिर्फ जुरमाना कर सकती थीं; और वह जुरमाना भी बहुत भारी न होता था। "कण्टक-शोधन" अदालतों के सामने फौजदारी के मुकदमे आते थे। ये अदालतें भारी से भारी जुरमाना कर सकती और फाँसी तक की सजा दे सकती थीं। सब से छोटी अदालत उस सदर मुकाम में बैठती थी, जो दस गाँवों के बीच में होता था। उसके ऊपर वह अदालत होती थी, जो ४०० गाँवों के बीचवाले सदर मुकाम में बैठती थी। उसके ऊपर वह अदालत होती थी, जो ८०० गाँवों के बोचवाले सदर मुकाम में बैठती थी। इसके सिवा एक अदालत दो प्रान्तों के बीचवाले सीमा स्थान में और दूसरी अदालत राजधानी में होची थी। इन सब अदालतों के ऊपर खयं
- कौटिलीय अर्थशास्त्र: अधि०३. अध्या० १.
+ कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० ४, अध्या० १. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com