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बौर-कालीन भारत
१८६ करना पड़ता था। जब राजा किसी को कोई पदवी देता था, तब वह राजा को बहुत सा धन भेंट करता था । ___ सरकारी खजाने का रुपया नीचे लिखे हुए कामों में व्यय होता था—यज्ञ, पितृ-पूजन, दान आदि; राजान्तःपुर का प्रबंध; सरकारी कर्मचारियों का वेतन; सेना; सरकारी इमारतें और लोकोपकारी कार्य; जंगलों की रक्षा आदि *। किस काम में कितना खर्च होना चाहिए, यह उसके महत्त्व पर निर्भर रहता था। ___ आय-व्यय विभाग दो बड़े अध्यक्षों के अधिकार में था। आय विभाग का अध्यक्ष “समाहर्ता" + और व्यय विभाग का अध्यक्ष “सन्निधाता” + कहलाता था।
परराष्ट्र विभाग-मौर्य सम्राटों का केवल भारतवर्ष के दूसरे भागों के राजाओं के साथ ही नहीं, बल्कि विदेशी राष्ट्रों के साथ भी घनिष्ट राजनीतिक सम्बन्ध था । मौर्य साम्राज्य में एक विभाग का कर्तव्य विदेशियों की देख रेख करना था। अनेक विदेशी व्यापार अथवा भ्रमण के लिये इस देश में आते थे । इस विभाग की ओर से उनका उचित निरीक्षण किया जाता था और उनकी सामाजिक स्थिति के अनुसार उन्हें ठहरने के लिये स्थान तथा नौकर चाकर आदि दिये जाते थे। स्वयं चन्द्रगुप्त के दरबार में सीरिया के राजा सेल्यूकस का राजदूत, मेगास्थिनीज, रहता था। चंद्रगुप्त के पुत्र, बिन्दुसार, के दरबार में सीरिया के राजा एन्टिओकस सोटर और मिस्र के राजा टालेमी फिलाडेल्फस के
• कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० ६. + कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० ६.
कौटिलीय अर्थशाख मधि० २, अध्या० ५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com