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मौर्य शासन पद्धति
राजदूत रहते थे। उनके नाम क्रम से डेईमेकस (Deimachos)
और डायोनीसियस (Dionysios) लिखे गये हैं। अशोक के तेरहवें “चतुर्दश शिलालेख” से पता लगता है कि अशोक का लंका के साथ तथा सीरिया, मिस्र, साइरीनी, मेसिडोनिया (यूनान)
और एपिरस नामक पाँच यूनानी राज्यों के साथ सम्बन्ध था। इन पाँचोयूनानी राज्यों में क्रम से अन्तियोक (Antiochos. II.) तुरमय (Ptolomy Philadelphos), मक ( Magas), अन्तिकिनि (Antigonos Gonatas) और अलिकसुंदर (Alexander. II.) नाम के राजा थे। तात्पर्य यह कि मौर्य काल में भारतवर्ष का पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ट सम्बन्ध था ।
कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार विदेशी राष्ट्र चार भागों में बाँटे गये हैं। यथा-"अरि","मित्र","मध्यम" और "उदासीन" । जिन विदेशी राष्ट्रों की सीमा किसी राष्ट्र की सीमा से बिलकुल मिली हुई होती थी, वे एक दूसरे के अरि कहे जाते थे। जिन दो राष्ट्रों के बीच में केवल अरि-राष्ट्र का अन्तर होता थे, वे एक दूसरे के "मित्र" कहे जाते थे। जो राष्ट्र अरि और मित्र दोनों राष्ट्रों के सन्निकट होते थे और जो दोनों की सहायता या दोनों का विरोध करने में समर्थ होते थे, वे "मध्यम" राष्ट्र कहे जाते थे। जो राष्ट्र अरि, मित्र और मध्यम तीनों राष्ट्रों से परे होते थे, तीनों से प्रबल होते थे, और तीनों की सहायता या विरोध करने में समर्थ होते थे, वे "उदासीन" राष्ट्र कहे जाते थे । विदेशी राष्ट्रों के साथ साम, दान, दण्ड और भेद ये चारों नीतियाँ काम में
* कोटिलीय अर्थशास्त्र; अधि०६, अध्या० २. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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