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मौर्य शासन पद्धति
सम्राट् की अदालत होती थी । वह कई विचारकों की सहायता से ‘स्वयं अभियोग सुनता और उनका निर्णय करता था। इन अदालतों के सिवा गाँवों में पंचायतें भी होती थी, जो ग्रामवासियों के झगड़ों का निपटारा करती थीं । गाँवों की पंचायतों में "ग्रामिक" (गाँव के मुखिया) और गाँव के वृद्ध (ग्राम-वृद्धाः) पंच के तौर पर बैठते थे। आवश्यकता पड़ने पर ये लोग चोरी और ज्यभिचार के अपराधी को गाँव से बाहर भी निकाल सकते थे।
__ मौर्य साम्राज्य की दण्ड-नीति बहुत कठोर थी। प्राणदण्ड तो बहुत ही सहज बात थी। किन्तु अपराध होते ही बहुत कम थे । कठोर दण्ड देने का अवसर ही न आता था। चोरी बहुत ही कम हुआ करती थी। मेगास्थिनीज ने लिखा है कि मैं जितने दिनों तक चंद्रगुप्त की राजधानी में रहा, उतने दिन किसी रोज़ भी २००) से ज्यादा की चोरी नहीं हुई। यह भी ध्यान रहे कि उन दिनों पाटलिपुत्र की आबादी चार लाख थी। चोरी के लिये ऐसा कठोर दण्ड था कि यदि कोई राजकर्मचारी ८ या १० पण ( उस समय का एक सिका) चुरा लेता था, तो उसे प्राणदण्ड मिलता था; और यदि कोई साधारण आदमी ४० या ५० पण चुराता था, तो उसे प्राणदण्ड दिया जाता था। अपराधियों के लिये अठारह प्रकार के दण्डों की व्यवस्था थी, जिसमें सात प्रकार से बेंत लगाने का भी विधान था ।
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