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बौर-कालीन भारत खेती-बारी करते हुए लिखे गये हैं। क्षत्रिय लोग भी व्यापार करते थे। एक क्षत्रिय के बारे में लिखा है कि उसने कुम्हार, माली और पाचक के काम किये थे। तो भी इन लोगों की जातियों में कोई अंतर नहीं हुआ था। यही उस समय की सामाजिक दशाथी। अब तत्कालीन धार्मिक दशा का वर्णन किया जाता है।
धार्मिक दशा
यक्ष और बलिदान-बुद्ध के जन्म के समय धर्म की बड़ी बुरी दशा थी। उस समय पशु-यज्ञ पराकाष्ठा को पहुँचा हुआ था। निरपराध, दीन, असहाय पशुओं के रुधिर से यज्ञ-वेदी लाल की जाती थी। यह पशु-बध इसलिये किया जाता था कि जिसमें यजमान की मनोकामना पूरी हो। पुरोहित लोग यजमानों से यज्ञ कराने के लिये सदैव तत्पर रहते थे। यही उनकी जीविका का मुख्य द्वार था। बिना दक्षिणा के यज्ञ अपूर्ण और निष्फल समझा जाता था; अतएव ब्राह्मणों को इन यज्ञों और बलिदानों से बड़ा लाभ होता था। जन्म से लेकर मरण पर्यंत प्रत्येक संस्कार के साथ यज्ञ होना अनिवार्य था । कर्मकांड का पूर्ण रूप से और सार्वभौमिक प्रसार था । समाज बाह्याडम्बर में फँसा हुआ था; पर उसकी आत्मा घोर अंधकार में पड़ी हुई प्रकाश के लिये पुकार रही थी। किंतु कोई यह पुकार सुननेवाला न था । समाज पर इस यज्ञ-प्रथा का बहुत ही बुरा प्रभाव - पड़ता था। एक तो यज्ञों में जो पशु-बध होता था, उससे मनुष्यों के हृदय कठोर और निर्दय होते जा रहे थे और
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