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छठा अध्याय
बौद्ध संघ का इतिहास गौतम बुद्ध ने देश देशांतरों में अपने धर्म का प्रचार करने के लिये भिक्षु-संघ की स्थापना की थी। यह भिक्षु-संघ संसार के धार्मिक इतिहास में अपने ढंग की अनोखी संस्था है । संसार की ऐसी बहुत कम धार्मिक संस्थाएँ हैं, जो उतनी पूर्णता तक पहुँची हों, जितनी पूर्णता तक बौद्ध संघ की संस्था पहुँची है। स्वयं भारतवर्ष के इतिहास में भी यह संस्था अपनी तुलना नहीं रखती । पर बौद्ध धर्म की तरह बौद्ध संघ की भी जड़ भारतवर्ष की भूमि में पहले ही से विद्यमान थी । भारतवर्ष में बुद्ध से बहुत पहले ही भिक्षु, तपस्वी, संन्यासी, यति, वैखानस, परिव्राजक आदि होते चले आये थे। वैदिक धर्म के ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम में बौद्ध संघ का बीज वर्तमान था। बुद्ध भगवान् ने अपने भिक्षु-संघ के लिये जो नियम बनाये थे, वे प्रायः वही थे, जो धर्मशास्त्रों में ब्रह्मचारियों और संन्यासियों के लिये लिखे गये हैं। रामायण, महाभारत और उपनिषदों से पता चलता है कि उस समय स्थान स्थान पर ऋषियों के तपोवन और आश्रमथे, जिनमें ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, परिव्राजक और संन्यासी बहुत बड़ी संख्या में एक साथ रहते हुए अपनी आत्मिक उन्नति किया करते थे। बौद्ध ग्रन्थों से भी इस बात के काफी सबूत मिलते हैं कि बुद्ध भगवान से पहले और बुद्ध भगवान् के समय में भी झुण्ड के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com