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बौख-कालीन भारत
११८ बड़े भारी साम्राज्य का शासन किया। चन्द्रगुप्त की राज्यशक्ति इतनी दृढ़ता से स्थापित थी कि वह उसके पुत्र बिन्दुसार और तत्पश्चात् उसके पौत्र अशोक के हाथ में बे-खटके चली गई यूनानी राज्यों के शासक उसकी मित्रता के लिये लालायित रहते थे। सेल्यूकस के बाद फिर किसी यूनानी राजा ने भारतवर्ष पर चढ़ाई करने का साहस नहीं किया; और चन्द्रगुप्त के बाद दो पीढ़ियों तक यूनानी राजाओं का भारतवर्ष के साथ राजनीतिक
और व्यापारिक सम्बन्ध बना रहा । ___ मौर्य साम्राज्य पर विदेशी प्रभाव-कुछ लेखकों का विचार है कि मौर्य साम्राज्य पर सिकन्दर के आक्रमण का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा; पर यह कथन ठीक नहीं है । सिकन्दर केवल उन्नीस महीने भारतवर्ष में रहा। ये उन्नीस महीने सिर्फ लड़ाई झगड़े और भयानक मार काट में बीते थे। भारतवर्ष में अपना साम्राज्य खड़ा करने का जो कुछ विचार उसके मन में रहा हो, पर वह उसकी मृत्यु के बाद ही बिलकुल निष्फल हो गया । चन्द्रगुप्त को सिकन्दर के उदाहरण की आवश्यकता न थी। उसकी और उसके देशवासियों की आँखों के सामने दो शताब्दियों तक फारस के साम्राज्य का उदाहरण था। यदि चन्द्रगुप्त ने किसी विदेशी उदाहरण का अनुकरण किया भी, तो केवल फारस के साम्राज्य का । चन्द्रगुप्त के दरबार और उसकी राज्य-प्रणाली में जो थोड़ा बहुत विदेशी प्रभाव पाया जाता है, वह यूनान का नहीं, बल्कि 'फारस का है । ईसा के बाद चौथी शताब्दी के अन्त तक भारतवर्ष के प्रान्तीय शासक "क्षत्रप" नाम से पुकारे जाते थे। यही "क्षत्रय" शब्द फारस देश के प्रान्तीय शासकों के लिये भी
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