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मौर्य शासन परति जाते थे; "अमित्र" जो शत्रु देशों में से भर्ती किये जाते थे और "अटवी" जो जंगली जातियों में से भर्ती किये जाते थे ।
सेना के अस्त्र शस्त्र-कौटिलीय अर्थशास्त्र में "स्थिरयन्त्र" ( जो एक ही जगह से चलाया जाय ), "चलयन्त्र” ( जो एक जगह से दूसरी जगह हटाया जा सके ), "हलमुख" (जिसका सिरा हल की तरह हो), "धनुष", "बाण", "खण्ड", "क्षुरकल्प" (जो छूरे के समान हो) आदि अनेक अस्त्र-शस्त्रों के नाम मिलते हैं । इनके भी बहुत से भेद तथा उपभेद थे ।
दुर्ग या किले-चाणक्य के अनुसार उन दिनों दुर्ग कई प्रकार के होते थे और चारों दिशाओं में बनाये जाते थे। निम्नलिखित प्रकार के दुर्गों का पता चलता है । “औदक" जो द्वीप की तरह चारो ओर पानी से घिरा रहता था; "पार्वत" जो पर्वतों की चट्टानों पर बनाया जाता था; “धान्वन" जो रेगिस्तान या ऊसर भूमि में बनाया जाता था; और "वनदुर्ग" जो जंगल में बनाया जाता था। इनके सिवा बहुत से छोटे छोटे किले गाँवों के बीच बीच में भी बनाये जाते थे। जो किला ८०० गाँवों के केन्द्र में बनाया जाता था, उसे "स्थानीय"; जो किला ४०० गाँवों के बीच में बनाया जाता था, उसे "द्रोणमुख";. जो किला २०० गाँवों के मध्य में बनाया जाता था, उसे "खार्वटिक"; और जो किला दस गाँवों के केन्द्र में रहता था, उसे "संग्रहण" कहते थे।
* कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० ६, अध्याय २. * कौटिलीय अर्थशस्त्र; अधि० २, अध्याय १८.
कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधि० २, अध्या० १ और ३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com