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मौर्य शासन पति चीज़ पर कितनो पूँजो लगाई गई है, कितना रास्ते का खर्च पड़ा है, कितनी चुंगी लगी है, कितनी मजदूरी बैठी है आदि। इस विभाग का अध्यक्ष बड़ी सावधानी से इस बात का निरीक्षण करता था कि बनिये तथा व्यापारी राजमुद्रांकित बटखरों और नापों का प्रयोग करते हैं या नहीं। जो मनुष्य जाली बटखरों और नापों का प्रयोग करता था, वह दण्ड का भागी होता था। प्रत्येक व्यापारी को व्यापार करने के लिये राज्य से परवाना या लाइसेन्स लेना पड़ता था और इसके लिये उसे एक प्रकार का कर भी देना पड़ता था । किसी प्रकार के माल में और स्वास करके खाने पीने की चीजों में कोई मिलावट न होने पावे, इसकी बड़ी ताकीद रहती थी। उस समय सोने, चाँदी और ताँबे तीनों धातुओं के सिक प्रचलित थे; पर सोने के सिक्कों का चलन उस समय कदाचित् बहुत कम था । चाँदी का सिक्का “कर्ष" और "पण" तथा ताँबे का सिक्का “कार्षापण" कहलाता था। राज्य की ओर से वणिक्पथ भी बनाये और सुरक्षित रक्खे जाते थे। इन वणिकपथों पर आध आध कोस पर पथ-प्रदर्शक पत्थर (माइल-स्टोन) गड़े रहते थे। चाणक्य ने चार प्रधान वणिक् पथ लिखे हैं। एक पथ उत्तर में हिमालय की ओर, दूसरा दक्षिण में विन्ध्य पर्वत की ओर, तीसरा पश्चिम की ओर और चौथा पूर्व की ओर जाता था। उन दिनों उत्तर और दक्षिण की ओर जो सड़कें नाती थीं, वे अधिक महत्त्व की मानी जाती थीं; क्योंकि उत्तर
और दक्षिण के देशों में व्यापार अधिक होता था। उत्तर से हाथी, घोड़े, सुगन्धित पदार्थ, हाथी-दाँत, ऊन, चमड़ा, सोना
और चाँदी तथा दक्षिण से शंख, हीरा, मोती आदि पाता था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com