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मौर्य शासन पद्धति पुरा विभाग (भावकारी का महकमा)-आबकारी के महकमे का अफसर "सुराध्यक्ष" कहलाता था । वह नगरों, गाँवों
और स्कन्धावारों (सेनाओं के निवास स्थानों) में शराब की बिक्री का प्रबंध करता था। हर एक आदमी शराब खरीदकर दूकान के बाहर न ले जा सकता था। केवल वही लोग दूकान के बाहर शराब ले जा सकते थे, जो अच्छे चालचलन के होते थे। हाँ, बाकी लोग वहीं बैठकर शराब पी सकते थे। शराब बहुत थोड़ी मिकदार में बेची जाती थी। पानागार (होली) में कई कमरे रहते थे। उनमें से हर एक में खाट और आसन अलग अलग बिछे रहते थे। इसके अतिरिक्त उनमें ऋतु के अनुसार सुगंधित पदार्थ, फूल, माला, जल आदि भी रक्खा रहता था। हौलियाँ एक दूसरी के बहुत पास पास नहीं होती थीं । विशेष विशेष अवसरों 'पर, जैसे विवाह, उत्सव, त्योहार आदि में, लोग खुद अपने घर शराब बना सकते थे। अन्य अवसरों पर यदि कोई किसी नियम का भंग करता था, तो वह दण्ड पाता था। हौली के -मालिक का कर्तव्य होता था कि वह अपने ग्राहकों की रक्षा करे । अगर शराब के नशे में किसी की कोई चीज गुम हो जाती थी, तो हौली का मालिक उसका नुकसान भर देता था।
पशु-रक्षा विभाग-मौर्य साम्राज्य में पशुओं की रक्षा और उन्नति की ओर खास तौर पर ध्यान दिया जाता था । कम से कम पाँच अफसर इस काम के लिये नियुक्त थे। उन अफसरों के नाम ये हैं-(१) गोऽध्यक्ष (गाय-बैल के महकमे का अफसर),
* कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० २५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com