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मौर्य शासन पद्धति करता था, वह दण्ड का भागी होता था। ब्राह्मण, परिव्राजक, बालक, वृद्ध, रोगी, राजदूत और गर्भिणी स्त्री से कोई महसूल नहीं लिया जाता था। छोटे पशु की उतराई एक माष ( एक प्राचीन सिक्का ), गाय, बैल या घोड़े की उतराई दो माप, ऊँट या भैंस की उतराई चार माष, छोटे छकड़े की उतराई पाँच माष
और बड़े की छः या सात माष लगती थी। जो मनुष्य बिना मुद्रा (पास) के यात्रा करता था, उसका माल जब्त हो जाता था ।
शुल्क विभाग (चुंगी का महकमा)-शुल्क विभाग का अध्यक्ष "शुल्काध्यक्ष" कहलाता था* । वह नगर के हर फाटक पर चुंगीघर बनवाता था और चुंगी वसूल करनेवाले कर्मचारियों के कामों का निरीक्षण करता था। चुंगी-घर के ऊपर एक झंडा गड़ा रहता था, जो दूर से ही उसके अस्तित्व की सूचना देता था। जब व्यापारी लोग अपना माल लेकर फाटक पर आते थे, तब चार या पाँच कर्मचारी अपने रजिस्टर में यह दर्ज करते थे कि व्यापारी का नाम क्या है, वह कहाँ से आया है, अपने साथ कौन सा और कितना माल लाया है और पहली बार कहाँ उस पर चुंगीघर की मोहर लगाई गई थी। जिन व्यापारियों के माल पर मोहर नहीं लगी होती थी, उनसे दूनी चुंगी ली जाती थी । यदि किसी व्यापारी के माल पर जाली मोहर लगी रहती थी, तो उससे अठगुनी चुंगी वसूल की जाती थी । जो व्यापारी बिना चुंगी दिये हुए चंगी-घर के आगे निकल जाते थे, उनसे भी दण्ड स्वरूप अठगुनी चुंगी ली जाती थी। विवाह, यज्ञ, सूतिकागृह, देवी
* कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि. २, अध्या० २१-२२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com