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बौद्ध-कालीन भारत
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देवताओं की पूजा, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों तथा अन्य धार्मिक कृत्यों के लिये जो चीजें लाई जाती थीं, उन पर चुंगी न लगती थी। बाहर से आने के समय तो माल पर चुंगी लगती ही थी, बाहर जाने के समय भी उस पर चुंगी लगाई जाती थी। जो चीजें बाहर से आती थीं,उन पर उनके मूल्य का पाँचवाँ हिस्सा चुंगी के तौर पर वसूल किया जाता था। फल, फूल, साग-भाजी, मांस, मछली आदि पर उनके मूल्य का छठा हिस्सा चुंगी के तौर पर लिया जाता था। हीरे, मोती आदि पर उनके मूल्य के अनुसार चुंगी लगाई जाती थी। ऊनी, सूती और रेशमी कपड़े, रंग, मसाले, लोहे, चन्दन, शराब, हाथीदाँत, चमड़े, रूई और लकड़ी
आदि पर उनके मूल्य का दसवाँ या पन्द्रहवाँ भाग लिया जाता था। चौपाये, पक्षी, अनाज, तेल, शकर और नमक आदि पर उनके मूल्य का बीसवाँ या पचीसवाँ भाग लिया जाता था ।
आकर विभाग ( खान का महकमा )-मेगस्थिनीज़ ने लिखा है-"भारतवर्ष में हर एक धातु की बहुत सी खानें हैं। इन खानों से सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा, टीन आदि बहुतायत से निकलते हैं ।" इससे पता चलता है कि मौर्य काल में खानों की खुदाई का काम खूब ज़ोरों के साथ होता था। कौटिलीय अर्थशास्त्र से पता लगता है कि मौर्य साम्राज्य में खानों की खुदाई के लिये एक अलग महकमा था । इस महकमे के अफसर को “श्राकराध्यक्ष" कहते थे। उस समय दो प्रकार की खानें थीं-एक जमीन के अन्दरवाली और दूसरी समुद्र के अन्दर को । दोनों प्रकार
• Megasthenes; Book I. Fragment I.
1 कौटिलीय अर्थशास्त्र अधिक २, अध्या० १२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com