________________
बौद्ध-कालीन भारत
१७० और वाणिज्य की देख भाल और उन्नति करने के लिये एक अलग विभाग था। इस विभाग का अफसर "पण्याध्यक्ष" कहलाता था। उसका प्रधान कर्तव्य देश के भीतरी और बाहरी व्यापार की उन्नति और वृद्धि करना था । वह इस बात का पता लगाता रहता था कि बाजार में क्सि चीज की माँग ज्यादा है
और किस चीज की कम । वह यह भी देखता था कि किस चीज का दाम बढ़ा और किस का दाम घटा; और कौन सी चीज़ किस समय खरीदने या बेचने में विशेष लाभ हो सकता है। जो व्यापारी विदेशों से माल मँगाते थे, उनके साथ वाणिज्य विभाग की ओर से खास रिआयत की जाती थी। उनसे चुंगी आदि नहीं ली जाती थी। देश में जिन वस्तुओं की आवश्यकता और खपत नहीं होती थी, वे बाहर भेज दी जाती थीं । वाणिज्य विभाग उन वस्तुओं के बाहर भेजने में सहूलियत करता था । इस विभाग का अध्यक्ष यह भी जानने का यत्न करता था कि भिन्न भिन्न देशों में भिन्न भिन्न वस्तुओं का क्या भाव है। एक जगह से दूसरी जगह माल ले जाने में कितना खर्च पड़ेगा, रास्ते में कौन कौन से भय के स्थान हैं, भिन्न भिन्न नगरों का क्या रीतिरिवाज है, इन सब बातों का ब्योरा वह व्यापारियों को बतला सकता था । कभी कभी कई सौदागर एक साथ मिलकर चीजों का दाम बहुत बढ़ा देते थे। ऐसी दशा में पण्याध्यक्ष चीजों की दर बाँध देता था। चाणक्य के अनुसार किसी चीज़ की दर बाँधने के समय इस बात का खयाल रक्खा जाता था कि उस
* कौटिलीय अर्थशास्त्र; अपि० २, अध्या० १६.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com