________________
बौद्ध-कालीन भारत
१६८ तृतीयांश और द्वितीयांश होता था। अर्थशास्त्र में कुल्या का भी नाम आता है, जिसका अर्थ "कृत्रिमा सरित्" अथवा नहर है। इससे विदित होता है कि उन दिनों भारतवर्ष में नहरें बनाई जाती थीं और उनके द्वारा खेत सींचे जाते थे । पानी जमा करने के लिये सेतु या बाँध भी बाँधे जाते थे और तालाब, कूएँ आदि की मरम्मत सदा हुआ करती थी। इस बात की भरपूर देख रेख रहती थी कि यथासमय हर एक मनुष्य को सिंचाई के लिये
आवश्यकतानुसार जल मिलता है या नहीं। जहाँ नदी, सरोवर, तालाब इत्यादि नहीं होते थे, वहाँ राज्य की ओर से खुदवाये जाते थे * । गिरनार में, जो काठियावाड़ में है, एक चट्टान पर क्षत्रप रुद्रदामन् का एक लेख खुदा हुआ है। उससे विदित होता है कि दूरस्थित प्रान्तों की सिंचाई पर मौर्य सम्राट् कितना ध्यान देते थे। यह लेख सन् १५० ई० के लगभग लिखा गया था । - इसमें लिखा है कि पुष्यगुप्त वैश्य ने, जो चन्द्रगुप्त की ओर से पश्चिमी प्रान्तों का शासक था, गिरनार की पहाड़ी पर एक छोटी नंदी के एक ओर बाँध बनवाया, जिससे एक झील सी बन गई। इस झील का नाम सुदर्शन रक्खा गया और इससे खेतों की सिंचाई होने लगी। बाद को अशोक ने इसमें से नहरें भी निकलवाई। ये नहरें अशोक के प्रतिनिधि राजा तुषास्फ की देख भाल में बनवाई गई थीं। राजा तुषास्फ पारसीक (पर्शियन) जाति का था । मौर्य सम्राट् की बनवाई हुई मील तथा बाँध दोनों चार सौ वर्षों तक कायम रहे । उसके बाद सन् १५० ई० में
* अर्थशास्त्र अधि० २, अध्या० २४. ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com