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मौर्य शासन पति
समय भी खेतिहर लोग शान्तिपूर्वक खेती के काम में लगे रहते थे।
नहर विभाग-भारतवर्ष सदा से कृषि-प्रधान देश रहा है । अतएव इस देश के लिये सिंचाई का प्रश्न सदा से बहुत महत्त्व का गिना जाता है। चन्द्रगुप्त के शासन के लिये यह बड़े गौरव की वात है कि उसने सिंचाई का एक अलग विभाग ही बना दिया था। इस विभाग पर वह विशेष ध्यान देता था। मेगा'स्थिनीज ने भी लिखा है-"भूमि के अधिकतर भाग में सिंचाई होती है और इसीसे साल में दो फसलें पैदा होती हैं ।।" "राज्य के कुछ कर्मचारी नदियों का निरीक्षण और भूमि की नाप जोख उसी तरह करते हैं, जिस तरह मिस्र में की जाती है। वे उन नालियों को भी देखभाल करते हैं, जिनके द्वारा पानी प्रधान नहरों से शाखा नहरों में जाता है, जिसमें सब किसानों का समान रूप से नहर का पानी मिल सके ।" मेगास्थिनीज़ के इस कथन की अर्थशास्त्र से पूरी तरह पुष्ट हो जाती है । सिंचाई के बारे में कुछ बातें ऐसी भी लिखी हैं, जो मेगास्थिनीज़ के वर्णन में नहीं पाई जातीं। अर्थशास्त्र के अनुसार सिंचाई चार प्रकार से होती थी । यथा-(१) हस्तप्रावर्तिम अर्थात् हाथ के द्वारा; (२) स्कन्धप्रावर्तिम अर्थात् कन्धे पर पानी ले जाकर; (३) स्रोतोयन्त्रप्रावर्तिम अर्थात् यन्त्र के द्वारा; और (४) नदीसरस्तटाककूपोद्घाटम् अर्थात् नदियों, तालाबों और कूपों के द्वारा। सिंचाई के पानी का महसूल ऊपर लिखे हुए क्रम से पैदावार का पंचमांश, चतुर्थाश,
* Strabo; XV. 40. + Megasthenes; Book I, Fragment I.
Megasthenes; Book III, Fragment XXXIV. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com