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बौख-कालोन भारत ( वस्त्र-आभूषण आदि पहनानेवाले ), उदक-परिचारक (पानी पिलानेवाले), नर्तक, गायक, वादक, वाग्जीवी ( चारण आदि) -कुशीलव (नट आदि) से भी गुप्तचर का काम लिया जाता था । गुप्तचर लोग छल से प्रायः गूंगे, बहरे और अंधे बनकर भी रहते थे। इन वेशों में ये लोगों के रंग ढंग देखा करते थे।
वेश्याओं से भी गुप्तचर का काम लिया जाता था। गुप्तचर लोग गूढ़ या सांकेतिक लेख ( Cipher Writing ) द्वारा गुप्त संवाद भेजा करते थे। अर्थशास्त्र में इस तरह के गूढ़ या सांकेतिक लेख का नाम "संज्ञालिपि" या "गूढलेख्य" दिया है।
कृषि विभाग राज्य की ओर से "सीताध्यक्ष" नामक एक अधिकारी "नियुक्त रहता था, जो कृषि विभाग का शासन करता था * । उसका पद प्रायः वही था, जो आजकल के "डाइरेक्टर आफ एग्रिकल्चर" का है। वह कृषि विद्या का पूर्ण पण्डित होता था । इस विद्या के शास्त्रीय और व्यावहारिक दोनों ज्ञान उसे रहते थे। खेती की भूमि राजा की संपत्ति मानी जाती थी और राजा किसानों से पैदावार का चौथाई या छठा भाग कर के तौर पर लेता था। यह पता नहीं लगता कि लगान का बन्दोबस्त हर साल होता था या कई सालों के बाद । किसान लोग सैनिक सेवा से अलग रक्खे जाते थे। मेगास्थिनीज यह देखकर बहुत चकित हुआ था कि जिस समय शत्रु-सेनाएँ घोर संग्राम मचाये रहती थीं, उस
* कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधि २, अध्या० २४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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