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चौर-कालीन भारत
१६४ दिया जाता था, जिससे वे अपनी शिष्य मण्डली के साथ प्रकट रूप से खेती, गोपालन, वाणिज्य आदि किया करते थे, पर गुप्त रूप से राजा को समाचार भी दिया करते थे। इस श्रेणी के गुप्तचर आचार्य की योग्यता रखते थे; अर्थात् वे किसी शास्त्र के विद्वान् , किसी विद्यालय के आचार्य, राज्य से वृत्ति पानेवाले और सूक्ष्म-दर्शी होते थे।
वृत्ति या व्यापार से हीन, किन्तु सच्चरित्र और दूरदर्शी कृषक "गृहपतिक" नाम के गुप्तचरों में भर्ती किये जाते थे । इन्हें राज्य की ओर से भूमि दे दी जाती थी, जिसे जोत बोकर ये अपना निर्वाह करते थे और राजा को ग्राम के गुप्त समाचार दिया करते थे। इस श्रेणी के गुप्तचर प्रकट रूप से तो आजकल के पटवारियों का काम करते थे, पर गुप्त रूप से राजा को अपने अधीनस्थ ग्रामों के समाचार दिया करते थे। यदि कोई नया आदमी किसी गाँव में आकर बसता था, तो ये गुप्तचर उसके कुल-शील आदि का भी पता लगाते थे। __वृत्ति या व्यापार से हीन, किन्तु सच्चरित्र और दूरदर्शी चणिक “वैदेहक" नाम के गुप्तचरों में भर्ती किये जाते थे। सेठ, -साहूकार आदि गिरी हालत में आ जाने पर इस वर्ग में भर्ती हो जाते थे। वे दूसरे सेठों, साहूकारों और व्यापारियों पर नजर रखते थे और सन्देह होने पर राजा को समाचार देते थे ।
जो गुप्तचर साधुओं के वेश में, सिर मुड़ाये हुए या जटा रखे हुए घूमते थे, वे "तापस" कहलाते थे। ये गुप्त रीति से लोगों के चरित्र देखते थे, अपराधियों का पता लगाते थे और जन-समाज के विचारों तथा प्रवृत्तियों का निरीक्षण करते थे।
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