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मौर्य शासन पद्धति (सम्वाददाता) नियुक्त थे । ये लोग प्रति दिन हर नगर या प्राम का पूरा समाचार राजधानी को भेजा करते थे।
गुप्तचर विभाग-सेना के बाद राज्य की रक्षा गुप्तचरों पर निर्भर थी । अर्थ शास्त्र में गुप्तचरों और उनके विभाग का बहुत अच्छा वर्णन मिलता है। गुप्तचर लोग भिन्न भिन्न नामों और रूपों से घूम फिरकर राजा के पास हर प्रकार का समाचार भेजा करते थे। वे केवल साम्राज्य के अंदर ही नहीं, बल्कि साम्राज्य के बाहर भी उदासीन तथा शत्रु राज्यों में जाकर गुप्त बातों का पता लगाया करते थे। आधुनिक सभ्य राष्ट्रों की भाँति चन्द्रगुप्त ने भी गुप्तचर संस्था स्थापित की थी और इसी संस्था के द्वारा वह सब बातों का पता लगाया करता था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में निम्नलिखित गुप्तचरों के नाम, रूप और कार्य दिये है
(१) कापटिक, (२) उदास्थित, (३) गृहपतिक, (४) वैदेहक, (५) तापस, (६) सत्री, (७) तीक्ष्ण, (८) रसद और (९)भिक्षुकी ।
जो चतुर गुप्तचर दूसरों के मन की बात सहज में जान लेते थे, वे " कापटिक छात्र" कहलाते थे। विद्यालयों के विद्यार्थियों तथा अध्यापकों के कार्यों पर ध्यान रखना इसी वर्ग के गुप्तचरों का काम था। जब कोई अपराधी भागकर विद्यार्थी के रूप में किसी पाठशाला में जा छिपता था, तब इसी वर्ग के गुप्तचर उसे अपनी चालाकी से पकड़ लेते थे ।
जो गुप्तचर तपस्वी, सच्चरित्र और दूरदर्शी होते थे, वे "उदास्थित" कहलाते थे। इस वर्ग के गुप्तचरों को यथेष्ट धनः
* अर्थशास्त्र; अधि. १, अध्याय ११-१२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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