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मौर्य शासन पद्धति
जाता था और उनकी सामाजिक स्थिति के अनुसार उन्हें ठहरने के लिये स्थान तथा नौकर चाकर दिये जाते थे। आवश्यकता पड़ने पर वैद्य लोग उनकी चिकित्सा करने के लिये भी नियुक्त थे। मृत विदेशियों का अन्तिम संस्कार उचित रूप से किया जाता था। मरने के बाद उनकी संपत्ति आदि का प्रबन्ध इसी विभाग की ओर से होता था और उसकी आय उनके उत्तराधिकारियों के पास भेज दी जाती थी। यह विभाग इस बात का बड़ा अच्छा प्रमाण है कि ईसवी तीसरी और चौथी शताब्दी में भी भारतवर्ष का विदेशी राष्ट्रों से पूरा सम्बन्ध था और बहुत से विदेशी व्यापार आदि के लिये यहाँ आते थे ।
तृतीय विभाग का कर्त्तव्य जन्म और मृत्यु की संख्याओं का ठीक ठीक हिसाब रखना था। ये संख्याएँ इसलिये रक्खी जाती थीं कि जिसमें राज्य को इस बात का पता लगता रहे कि नगर की
आबादी कितनी बढ़ी या कितनी घटी । यह लेखा रखने से प्रजा से कर वसूल करने में भी सहूलियत होती थी। यह कर एक प्रकार का पोल टैक्स (Poll-tax) था, जो हर मनुष्य पर लगाया जाता था। विदेशियों को यह देखकर आश्चर्य होता है कि उस प्राचीन काल में भी एक भारतीय शासक ने अपने साम्राज्य की जनसंख्या जानने का ऐसा अच्छा प्रबन्ध कर रक्खा था ।
चतुर्थ विभाग के अधीन व्यापार-वाणिज्य का शासन था । बिक्री की चीजों का भाव नियत करना और सौदागरों से बटखरों तथा नाप-जोखों का यथोचित उपयोग कराना इस विभाग
•Indian Antiquary; 1905, p. 200. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com